विश्व में शांति रहे, सभी निरोगी रहें ।
26 मई 2021 अंतरराष्ट्रीय बुद्ध पूर्णिमा विश्व शांति दिवस की समस्त विश्व वासियों को हार्दिक शुभकामनाएं , सबका मंगल हो सबका भला हो,सबका कल्याण हो।विश्व में शांति रहे, सभी निरोगी रहें ।
आज से 2500 साल पहले आज ही के दिन सिद्धार्थ नाम से महामानव ने जन्म लिया। सत्य की खोज में उन्होंने आठ साल कठिन तपश्चर्या की अंत में वो बुद्ध बने। जिनको हम तथागत गौतम बुद्ध के नाम से विश्व विख्यात हुए। उनके बताए रास्ते पर चलकर आज विश्व के कई दैशों के लोगों का कल्याण हो रहा है। बुद्ध ने लोगों को धम्म की शिक्षा दी।
धम्म का अर्थ है स्वभाव ।
बुद्ध ने कहा कि कुदरत का कानून ही धम्म है जो समानता पर आधारित है ,जिस समानता के नियम को अणु अणु धारण करता है , जैसे जिसने भी जन्म लिया है ,वो अवश्य ही मरेगा । पानी सबकी प्यास बुझाता है , कोई भी प्राणी पी ले । अग्नि सबको जलाती है । आक्सीजन सबके प्राणों की रक्षा करता है ।
यह कुदरत का कानून जो सभी प्राणियों पर लागू होता है और प्राचीन काल से लागू हो रहा है इसलिए सनातन है ।
बुद्ध का धम्म पथ हर इंसान के लिए है इसलिए सनातन है ।
आदि काल से एक मात्र मार्ग है जो सत्य चेतना के प्रवाह को अपनी काया के भीतर देख सकने का मार्ग है वो मार्ग बुद्ध ने खोजा और सबको बता दिया अंतरराष्ट्रीय बुद्ध पूर्णिमा विश्व शांति योग दिवस भी है।
जिस आर्य अष्टांगिक मार्ग की खोज तथागत सुकिती गोतम बुद्ध ने की है जिन्हें सिद्धार्थ गोतम बुद्ध भी कहते हैं । विश्व शांति के लिए एक मात्र मार्ग ही आर्य अष्टांगिक मार्ग है। जिस पथ पर चलकर मनुष्य अपनें अनन्त दुखों को खुद अपनें प्रयासों से अपनें पुरूषार्थ थे दूर करता है । बुद्ध के धम्म पथ पर चलकर विश्व शांति की स्थापना की जा सकती है ।
अशांति द्वेष और दुर्भावना से भरे माहौल में शीतल जल का सागर यदि कहीं है तो वो इंसान की काया के भीतर है । उस सागर में गोता लगाने के लिए बुद्ध का धम्म पथ है ।
पथ अर्थ है रास्ता।
रास्ता है इसलिए हर इंसान को खुद ही चलना पड़ेगा । समस्त दुखों का कारण तृष्णाए हैं । ओर चाहिए ,ओर अधिक चाहिए की इच्छा मनुष्य की खत्म नहीं होती है उम्र भर मनुष्य इतनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए बाहर भटकता है , लेकिन जहां प्यार का सागर है , अपनी काया के भीतर अनमोल खजाना है उस खजाने की खोज नहीं करता है । सत्य को पाने के लिए भी काया के भीतर डूबकी नहीं लगाता है , सत्य चेतना के प्रवाह को भी बाहरी कर्मकांड यज्ञ हवन ब्रत उपवास पूजा पाठ करके पाना चाहता है ।
सदगुरु कबीर कहते हैं कि "जोगी होकर जटा बढ़ावे ,नंगे पैर क्यूं फिरता है रे भाई।
गठरी बांध सिर उपर धर ली, यों क्या मालिक मिलता है रे भाई ।
जप माला छापा तिलक के बिना मनुष्य अपना काम नहीं चलता है यानि पाखंड ही पाखंड है जो करने योग्य है वो नहीं करता है जो नहीं करना है वो ही करता है ।
सत्य चेतना के प्रवाह को अपनें ही शरीर के भीतर देखना है लेकिन नहीं देखता है । सदगुरु कबीर की वाणियों का प्रयोग जीवन में होना चाहिए तो मनुष्य पाखंडो से दूर हो सकता है ।
लेकिन क्रांति कारी सदगुरु कबीर साहब को भी अवतार घोषित कर के उनकी वाणियो पर प्रहार है। बस जो लोग कबीर पंथी थे वो भी कबीर साहब की आरती करके दया की भीख मांगते हैं लेकिन उनके बताए मार्ग पर नहीं चलते हैं ।
सिर पर जटा धारण करने से क्या भीतर का सत्य मिलेगा ?
सदगुरु कबीर साहब कहते हैं कि,"करनी बिन कथनी कथे, अज्ञानी दिन रात ।" कूकर समान भूकत फिरे ,सुनी सुनाई बात।।
इंसान सुनी सुनाई बातों पर भरोसा करके सुख शांति को खोजने के लिए बाहर भटकता है ।
किसी ने कोई ग्रन्थ लिख दिया बस उसी को रात दिन पढ़ पढ़ अखंड पाठ करके, परम सत्य को पाना चाहता है लेकिन जहां सत्य है वहां मनुष्य खोजता नहीं है । लेकिन काया के भीतर सत्य चेतना के प्रवाह को देखना नहीं चाहता है ।
ईश्वर के नाम पर मनुष्य अज्ञानता में डूबा है ।
अंधविश्वास और पाखंडवाद में आज हमारा समाज पूरी तरह से जकड़ा हुआ है ,मजे की बात यह है कि सरकार भी चाहती है ,लोग गंगा स्नान करके पवित्र हो जाएं। गंगा स्नान अस्थि विसर्जन के काम रूके नहीं है । ज़िन्दगी रहते मनुष्य अच्छा काम करे तो गंगा स्नान की जरूरत ही नहीं है । रविदास जी ने कहा कि मन चंगा तो कठौती में गंगा ।
पवित्रता जीवन में बनाए रखने के लिए अपनें समस्त विकारों को भग्ग करके खुद भगवान बनना होगा । भगवान बनकर परम सत्य चेतना के प्रवाह को अपनी अनुभूति से देखना होगा ।
विश्व धरा पर प्रेम शांति करूणा का सागर लहराय । युद्ध टले , प्रबुद्ध बनें सब, मानवता ना टकराए । युद्ध से मुक्ति केवल बुद्ध के धम्म पथ पर चलकर मिलेगी ।
अपनी काया के भीतर गोती लगे तो चंचल मन स्थिर बने ओर बाहर की दोड खत्म हो जाएं । मनुष्य परम सत्य चेतना को काया के भीतर खोजने के लिए तैयार हो जाए तो समस्त झगड़े खत्म हो सकते हैं ।
मंदिर मस्जिद के विवाद , हिन्दू मुस्लिम के विवाद खत्म हो सकते हैं । सदगुरु कबीर साहब कहते हैं कि "मैं लागा उस एक से, एक भया सब माहि। सब अंधियारा मिट गया,दीपक देखा माहि।।"
मनुष्य अपनी काया के भीतर जब उस परम सत्य को देख लेता है तो वह एक है । जिसे ईश्वर अल्लाह राम कहते हैं वो तब ही एक है जब मनुष्य शरीर के भीतर तलाश करें ।
वो एक ही है जिसे अलग अलग नामों से पुकारते हैं। ईश्वर, अल्लाह, राम, खुदा, वाहेगुरु, ईशु आदि अनेक नामों के कारण ही झगड़े हैं। मानव मानव के बीच दूरियां है । सामाजिक संगठनों की दीवारें खड़ी हैं । हिन्दू धर्म जैन धर्म मुस्लिम धर्म ईसाई धर्म बोलने से धर्म समझ नहीं आयेगा यह सम्प्रदाय है ।
अपनी काया के भीतर ही परम सत्य चेतना का प्रवाह बह रहा है ,भीतर ही दीया जला है ,उसे देखो ।
कबीर साहब की वाणियो को समझने की जरूरत है ओर वही बात तथागत गौतम बुद्ध ने कही थी ।
काया के भीतर ही दीया जला है,आओ और देखो।
मैं मार्ग बता सकता हूं उस मार्ग पर चलना तो खुद को ही पड़ेगा और वो मार्ग ही आर्य अष्टांगिक मार्ग है ।
संसार का हर इंसान अपनी काया के भीतर सत्य ख़ोज ले तो सब अंधियारा मिट ही जायेगा ।
विश्व शांति स्थापित हो सकती है, युद्ध से मुक्ति मिल सकती है, हर इंसान विकारों से मुक्त हो पवित्र बनें ।
धम्म पथ पर चलकर धम्मिक बनें शील समाधि प्रज्ञा वान बनें उसके लिए सरकार को भी हर स्कूल में आनापान मेडीटेशन अनिवार्य करना चाहिए ।
दस मिनट की आनापान साधना का अभ्यास हर बच्चा स्कूल में शुरू करे तो धम्म पथ पर चलने के फायदे भारत देश के नागरिकों को अवश्य ही मिलेंगे।
बच्चे जब काया के भीतर ही सत्य खोजने के लिए राजी हो जायेंगे तो बाहर ब्रत उपवास पूजा पाठ कर्मकांड यज्ञ हवन के चक्कर में नहीं पड़े रहेंगे । जरूरत है बुद्ध की शिक्षाओं को जीवन में धारण करने की ।
Justice Desk@Tikam Shakya, Sr. Journalist,
Editor in chief - The Voice Of Justice
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