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Tuesday, May 25, 2021

5/25/2021 10:26:00 AM

हिन्दू कहो तो हूं नाहि ओर मुसलमान भी नाहि। पांच तत्व का पूतला गैबी खेलें माहि ।


सदगुरु कबीर साहब कहते हैं कि,"हिन्दू कहो तो हूं नाहि, ओर मुसलमान भी नाहि। पांच तत्व का पूतला गैबी खेलें माहि ।

मानवता के मसीहा ज्ञान के शिखर को छूने वाले सद्गुरु कबीर साहब ने समानता की स्थापना के लिए लोगों को समझाया । लोग पूछते कबीर आप हिन्दू हैं क्या ?


क्या आप मुस्लिम हैं तब सदगुरु कबीर साहब ने कहा कि मैं तो केवल इंसान हूं ,मैं ना तो हिन्दू हूं ना ही मुसलमान हूं जो दोनों ही समुदाय के  लोगों की काया के बीच सत्य है मैं उस परम सत्य को देखने वाला हूं ,वो तो सब मनुष्यों के भीतर एक ही है । कबीर साहब कहते हैं कि,"सब घट मैरा साईयां सूनी सैज न कोय। हर एक इंसान के भीतर सत्य चेतना का प्रवाह है , उस परम सत्य चेतना को हर इंसान के भीतर देखने के बाद कोई भी मनुष्य किसी अन्य मनुष्य से भेदभाव नहीं कर सकता है , अज्ञानी लोग उस सत्य को पत्थर की मूर्ति बनाकर तलाश करते हैं ,गंगा स्नान करके पवित्र धार्मिक कहलाते हैं ऐसे लोग धार्मिक नहीं है ऐसे लोग केवल पाखंडी है , 

ठांव ठांव तिरथ ब्रत रोपे ,ठगबे को संसार ,साधों भाई निरंजन जाल पसारा ।

मनुष्य भटकता रहे उसके लिए पाखंडियों ने जाल फैला रखा है और यह जाल बहुत पुराना है ।

पाखंडी लोग नास्तिक हैं ,झूठी आस्था है जिसे देखा नहीं है उसे खुद भी पूजते हैं और पूजा करवा देते हैं ,ऐसे झूठे लोग परम सत्य चेतना को कभी भी अपनी काया के भीतर देख नहीं सकते हैं ।

आस्तिक वो लोग हैं को कुदरत के कानून को मानते हैं । प्रकृति के नियमों की पालना करते हैं , कुदरत किसी के साथ भेदभाव नहीं करती है सब पर दया करके सूरज सबको रौशनी देता है , यह नहीं देखता कि हिन्दू है या मुस्लिम है , ऊंची जात का है या नीची जात का क्योंकि मनुष्य केवल मनुष्य ही है। मनुष्य के बीच भेदभाव छूआछूत करनें वाले लोग आस्तिक नहीं नास्तिक है । 

जो लोग सत्य चेतना के प्रवाह को अपनी ही काया के भीतर देखते हैं वो आस्तिक है ।मानव मानव में जहां प्रेम है, वो लोग आस्तिक ।

दया करूणा मैत्री बन्धुता मित्रता भाई चारा है रखने वाले लोग आस्तिक है ।

घोर नास्तिक वो लोग हैं जो मनुष्य के बीच दीवारें खड़ी करते हैं , उन्हें आपस में बांटते हैं और किसी अज्ञात शक्ति को खुश करने के लिए पाखंडवाद के दलदल में धंसते ही चले जाते हैं , ऐसे लोग न बुद्ध की सुनते हैं न सदगुरु कबीर साहब की ही सुनते हैं ।


सदगुरु का अर्थ है कि सत्य चेतना के प्रवाह को अपनी ही काया के भीतर देखने का मार्ग बताने वाले गुरु , सत्य चेतना के प्रवाह को हर इंसान अपनी ही काया के भीतर देखने के लिए राजी हो जाए तो गुरू भी ऐसे ही होने चाहिए लेकिन भारत देश में आजकल पाखंडियों की बाढ आ गयी है , कर्मकांड यज्ञ हवन करके महान पुरुषों की विचारधारा धारा को ही नष्ट किया जा रहा है ओर इन अंधविश्वास को ही धर्म समझ लिया है , सरकार को चाहिए कि सद्गुरु कबीर साहब जी की वाणियो को पाठ्यक्रम में शामिल करें और बुद्ध के आर्य अष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करना सीखाया जाए । 


स्कूल की प्रार्थनाएं मंत्रोच्चार तक सीमित हैं , मंत्रोच्चार से मनुष्य काया के भीतर सत्य नहीं देख सकता है , उसके लिए दस मिनट तक केवल आनापान साधना को सीखाना चाहिए ।

तीन दिन के शिविर भी विपश्यना सेंटर पर शुरू हो चुके हैं , सरकार पाठ्यक्रम में बुद्ध कबीर नानक साहब रविदास साहब के क्रान्तिकारी वचनों को शामिल करे । पाठ्यक्रम वैज्ञानिक सोच बढाने वाला होना चाहिए ।

(लेखिका: राजेश शाक्य. लेक्चरर जिला कोटा राजस्थान)

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