Hand-Picked/Weekly News

Travel
Sunday, May 16, 2021

5/16/2021 10:05:00 AM

विपश्यना मेडीटेशन बुद्ध द्वारा खोजा हुआ बुद्ध का धम्म पथ है, बुद्ध का मार्ग है ।




भारत देश में राष्ट्रीय ध्वज पर अंकित अशोक चक्र ही बुद्ध के आर्य अष्टांगिक मार्ग का प्रतीक चिन्ह है ।

जिसे धम्म पथ या अशोक चक्र या विपश्यना पथ भी कहते हैं ।

सम्यक शब्द का अर्थ है सही ।

सम्यक समाधि हर इंसान की काया में घटित हो उसके लिए सम्यक ध्यान करनें की जरूरत है ,सही तरीके से किया गया ध्यान ही मनुष्य के विवेक को जागृत करता है ।



विपश्यना विद्या की खोज बुद्ध ने की थी ।

विपश्यना मेडीटेशन बुद्ध द्वारा खोजा हुआ बुद्ध का धम्म पथ है, बुद्ध का मार्ग है ।

हर इंसान को बुद्ध के धम्म पथ पर चलने की जरूरत है ।

यह आवश्यक नहीं है कि हम चीवर धारण करके भिक्खु ,भिक्खुणि का जीवन जिये ।

लेकिन दस दिन का शिविर अवश्य ही करें ।

हम दस दिन के लिए विपश्यना सेंटर पर जाकर भिक्षु भिक्षुणियां कैसे जीते हैं ,उसका अभ्यास अवश्य करें ।

बुद्ध ने सम्यक समाधि के लिए,सही तरीके से ध्यान करना सीखाया था ।

सम्यक तरीके से ध्यान करनें से ही सम्यक समाधि घटित होती है ।

जो भी मनुष्य बुद्ध द्वारा दिखाए मार्ग पर चलना चाहते हैं, उन्हें कम-से-कम एक बार विपश्यना साधना के लिए दस दिन विपश्यना सेंटर पर जाकर विपश्यना साधना करनी चाहिए।

बुद्ध का धम्म पथ ही विपश्यना साधना है जिसे आर्य अष्टांगिक मार्ग भी कहते हैं ।

धम्म की गति को तेज करने के लिए बचपन से ही अपने परिवार के बच्चों को आनापान साधना अवश्य करवाएं।

विपश्यना विद्या सीखने से पहले आनापान का अभ्यास ही सीखाया जाता है जिसे सात वर्ष से ऊपर तक के मनुष्य घर में रहकर भी अभ्यास कर सकते हैं लेकिन पूरी विद्या सीखने के लिए विपश्यना सेंटर पर जाना ही अनिवार्य है ।

हर परिवार का मुखिया  यानि माता पिता , जब तक विपश्यना ध्यान के अनुभव से नहीं गुजरा हो तो उस परिवार के बच्चों को आनापान मेडीटेशन कोन सीखायेगा ।

इसलिए एक एक व्यक्ति को केवल दस दिन का समय विपश्यना साधना के लिए अवश्य देना चाहिए ।

आर्य अष्टांगिक मार्ग पर चलने के लिए दस दिन तो घर छोड़ कर जाएं ।कम से कम एक बार तो मनुष्य धम्म पथ पर चले।

धम्म चक्र पर चलकर ही बुद्ध की शिक्षाओं को जीवन में धारण करसकते हैं।

बचपन से ही बच्चों को धम्म पथ पर चलने का अभ्यास करवाना होगा ।

बुद्ध ने जो मार्ग बताया है उस मार्ग का अनुसरण विपश्यना साधना करके ही हम निर्वाण पथ का अभ्यास कर सकते हैं ।

अनंत सुखों को पाने के लिए अनंत दुखों को दूर करने का मार्ग ही बुद्ध का धम्म पथ है ।

बुद्ध का धम्म पथ प्रेक्टिस का विषय है ।

बुद्ध के धम्म पथ पर चलकर ही हम अच्छे माता-पिता बन सकते हैं और ओर एक अच्छा व्यक्ति ही समाज का अच्छा नागरिक बन सकता है ।

समाज का अच्छा नेता बन सकता है।

अच्छा राजा बन सकता है ।

जो भी लोग समाज को सही दिशा देना चाहते हैं उन्हें पहले खुद धम्म पथ पर चलकर देखना चाहिए ।

तब ही पूरे समाज को सही दिशा मिल सकती है ।

एक अच्छा नागरिक ही पूरे समाज को अपना परिवार समझ कर उसकी सही देखभाल कर सकता है ।

बुद्ध के धम्म पथ पर चलें थे सम्राट अशोक महान ।

विश्व के प्रिय राजा कहलाते हैं ।

 सम्राट अशोक महान ने बुद्ध के धम्म के लिए अपनें इकलौते पुत्र महेंद्र व अपनी इकलौती पुत्री संघमित्रा को धम्म पथ पर चलने के लिए समर्पित कर दिया ,यह त्याग की भावना इसलिए आई थी क्योंकि सम्राट अशोक महान ने खुद उस धम्म पथ पर चलकर देख लिया था ।

जो शूरवीर हैं वो ही धम्म चक्र पर चलते हैं ।

आज पूरे विश्व में बुद्ध का धम्म शुद्ध रूप में सुरक्षित है उसका श्रेय सम्राट अशोक महान को जाता है ।धम्म के लिए प्रेम व समर्पण की भावना न होती तो अपनें पुत्र वह पुत्री को चीवर धारण न करवाते ।

ओर विपश्यना साधना करके ही पुत्री संघमित्रा अरहत भिक्षुणी हुयी है ।

ओर विपश्यना साधना के अभ्यास से ही पुत्र महेंद्र अरहत भिक्षु हुए ओर पैदल चलकर ही श्री लंका पहुंचे और वहां आज भी 95 प्रतिशत आबादी बुद्ध की शिक्षाओं का पालन करती है और पूरे संसार में बुद्ध का धम्म जिन्दा है उसका प्रचार सम्राट अशोक महान ने ही किया था ।

धम्म प्रिय अशोक महान ने अपनी प्रजा के लिए विपश्यना विद्या उपलब्ध करवायी थी ।

भारत देश के हर घर में विपश्यना साधना होती थी ।

घर हो या पनघट , खेत हो या खलियान ,या पेड़ के नीचे बैठ लोग हो या चौपाल में बैठे लोग हो बस एक ही चर्चा विपश्यना साधना कैसी चल रही है ?

तेरी साधना कहां तक बढ़ी  ?बस धम्म चर्चा ही धम्म चर्चा ।

धम्म चक्र चला था सम्राट अशोक महान के शासन काल में ।

लोग चले थे धम्म पथ पर ।

अपनी प्रजा को पुत्र पुत्रियों की तरह प्रेम किया था सम्राट अशोक महान ने ।

जानवरों के लिए भी अस्पताल खोले थे ।

ब्रह्मांड के समस्त प्राणी सुखी हो , शांति से रहे यही तो बुद्ध की शिक्षाओं को जीवन में धारण करने से भाव आया था ।

सम्राट अशोक महान के शिलालेख बुद्ध की शिक्षाओं को जीवन में धारण करने के आदेश हैं ।

प्राचीन काल का भारत धम्मवान भारत था विपश्यना के कारण ओर विपश्यना के कारण बहुत शान्ती भारत देश के पास थी एवं शान्ति के साथ समृद्धि भी भारत देश के पास थी ।

इतनी शांति ओर समृद्धि के कारण विश्व के लोग भारत देश में आकर बुद्ध की शिक्षाओं का अध्ययन करते थे और अपने देश में जाकर उनकी भाषा में अनुवाद करते थे इसलिए बुद्ध की शिक्षाएं हर भाषा में उपलब्ध हैं ।

राजस्थान के जयपुर जिले के बैराठ के शिलालेख में लिखा है सम्राट अशोक महान तीन माह तक विपश्यना साधना सीखने के थे ।

मध्य प्रदेश सांची बौद्ध स्तूप है वहां एक वर्ष तक संघ मित्रा एवं महेंद्र रूके थे और विपश्यना साधना की थी ।

अपनें समस्त विकारों को भग्ग करके ही मनुष्य अरहत होता है ।

विकारों रूपी दुश्मनों को पूरी तरह नष्ट करके ही मनुष्य भगवान या अरहत या भगवंत होता है ।

सांची में दोनों भाई-बहन के रहने के आवास बनें हुए हैं ।

अरहत होकर दोनों बहन भाई धम्म चक्र पर चलें और विश्व में धम्म फैला है ।

सोचने का विषय है यदि सम्राट अशोक महान धम्म पथ पर नहीं चलते तो अपने पुत्र व पुत्री को धम्म के लिए समर्पित नहीं करते ।

इतने बड़े  सम्राट के बच्चे भिक्षु भिक्षुणि बने तो धम्म चक्र चला । लेकिन आज कितना भी गरीब परिवार हो वो अपने बच्चों को धम्म के लिए समर्पित नहीं करता है तो सोचो धम्म चक्र चलेगा कैसे ?

आज हमारे पास विपश्यना साधना करनें के लिए विपश्यना सेंटर हैं लेकिन हम जाते नहीं हैं ।

धम्म चक्र चले तो चले कैसे धम्म चक्र पर चलने वाले लोग नहीं हैं ।

सम्राट अशोक महान जैसा प्रधानमंत्री मिले उसके लिए धम्म वान व्यक्ति होना चाहिए ।

धम्म वान मनुष्य धम्म के आचरण से पैदा होंगे ।

शील समाधि प्रज्ञा वान मनुष्य बनेंगे ।

शील समाधि प्रज्ञा वान मनुष्य बने उसके लिए विपश्यना सेंटर पर जाकर विपश्यना साधना करनी होगी ।

समर्पण की भावना धम्म पथ पर चलने से आती है ।

अनंत सुखों को पाने के लिए धम्मवान बने ।

अनंत दुखों को दूर करने का मार्ग ही विपश्यना है ।

दुख हैं 

दुख का कारण है 

दुख निवारण किया जा सकता है 

दुखों से छुटकारा पाने का मार्ग ही आर्य अष्टांगिक मार्ग है जिसे विपश्यना भी कहते हैं।

जरूर है समाज के जागरूक

लोगों की जो धम्म का अभ्यास करें।

हर घर में हो विपश्यना का अभ्यास ।


Smt. Rajesh Shakya
Lecturer





0 Comments:

Post a Comment

THANKS FOR COMMENTS