Hand-Picked/Weekly News

Travel
Monday, May 17, 2021

5/17/2021 09:21:00 AM

पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजु पहाड़,

तातै यह चाकी भली पीस खाय संसार ।


सदगुरु कबीर साहब कहते हैं कि पत्थर की मूर्ति को पूजने से यदि परमात्मा मिल जाए तो मैं  तो पहाड़ को पूज लूं । उस पत्थर की मूर्ति से तो ,चाकी भली जिसस, मनुष्य आटा पीस कर खा लेता है ।

उस मंदिर में रखी पत्थर की मूर्ति का तो कोई उपयोग ही नहीं है ।

मनुष्य ईश्वर प्राप्ति के लिए बाहर भटकता है । जहां ईश्वर है वहां तलाश नहीं करता है ।यह मैं नहीं सद्गुरु कबीर साहब ने कहा है ।कबीर साहब के राम हर इंसान के शरीर के भीतर हैं ।

हर सांस में खोजो 


सांस सांस पर जान ले वृथा सांस मत खोय ।

ना जाने इन सांसों कि आवन होय न होय ।

मनुष्य कितना अज्ञानी है कि जो सत्य चेतना का प्रवाह काया के भीतर है ।

उसे पत्थरों में तलाश करता है ।

बुद्ध कहते हैं ,"एहि पस्सिको "।


आओं ओर देख लो , काया के भीतर ही दीया जला है तुम देखो , बुद्ध आमंत्रित करते हैं , आओ अपने शरीर के भीतर खोजने का मार्ग बता सकता हूं । सत्य है ही ,भीतर दीया जला ही है ,उसे सिर्फ देखने की जरूरत है जब जलता दीया देख लोगे तो बाहर क्या भटकना है ।

जिस पत्थर की मूर्ति को हमने बनाया है उसका नामकरण भी हमने ही किया है, ओर उस मूर्ति की पूजा हम करते हैं ,ओर उसके नाम को रटते हैं ,कैसा पागलपन है ?

इस पागलपन का शिकार हर इंसान हैं, घर घर में यह पागलपन देखा जा सकता है लेकिन किसी सद्गुरु कबीर की आपने कब सुनी है ।

बुद्ध की भी नहीं सुनोगे, बुद्ध तो मार्ग बताने वाले हैं कि सत्य चेतना का प्रवाह लगातार काया के भीतर ही बह रहा है, जो सनातन है , कभी खत्म नहीं होता,सदा है और रहेगा ,उस सत्य का न कभी जन्म होता है, न वो कभी मरता है, जिसे आप ईश्वर कहते हो , अल्लाह कहते हो उसका न जन्म होता है, न उसकी कभी मृत्यु होती है ।

जिसे आप ईश्वर अल्लाह, राम, खुदा, वाहेगुरु, ईशु आदि अनेक नामों से पुकारते हैं उसे बुद्ध ने सत्य चेतना का प्रवाह कहा है ओर मार्ग बता दिया है , देखने वाले इंसानों की जरूरत है ओर नहीं देख सकते हैं तो पाखंडी मत बनो ।

जप-तप ब्रत उपवास पूजा पाठ कर्मकांड यज्ञ हवन आदि करनें से जो सत्य काया के भीतर है वो कभी नहीं मिलेगा ।

बुद्ध कहते हैं

 मै सत्य चेतना के प्रवाह को देखने का मार्ग बता सकता हूं ।

उसे देखो ।उसे जानो ,काया के भीतर अनुभव से जानो 

जानो ।

मानो मत ।

मान लोगे तो कभी भी जान नहीं पाओगे । जानने के लिए अपनें मन की प्यास होनी चाहिए ।

भीतर सत्य है ,उसे देखो ।

यदि किसी मूर्ति को उसके नाम को अपने ईश्वर मान लिया है तो आप कभी भी सत्य नहीं जान सकते हैं । सत्य चेतना का प्रवाह काया के भीतर बह रहा है उसे अनुभव से जानो ।

इसलिए बुद्ध कहते हैं ,ब्रत उपवास पूजा पाठ कर्मकांड यज्ञ हवन तीर्थ यात्राएं यह सब बेकार हैं ।

क्रोधी इंसान लोगों को गालियां दे , मारे काटे ओर मंदिर में जाकर घंटियां बजाता रहे तो क्या वह धार्मिक है ? 

खूब नशा करे, शराब पिये,भांग धतूरा अफीम का सेवन करें।

खूब झूठ बोले, व्यभिचार करें बलात्कार करें तो क्या ऐसा मनुष्य धार्मिक है ?

सारे बुरे काम करने वाला मनुष्य , यज्ञ करें हवन करें घी जलाय तो क्या वह इंसान धार्मिक है ?

समस्त बुरे काम ही अधर्म है जैसे हिंसा चोरी व्यभिचार झूठ बोलना नशा करना भेदभाव छूआछूत करना अधार्मिक इंसान की पहचान है । इसलिए धम्म का सम्बन्ध पूरी तरह से एक एक मनुष्य के आचरण को सुधारने के लिए है ।


मनुष्य क्रोध से मुक्त हो जाए तो गाली नहीं दे सकता है । खुद अशांत नहीं हो सकता है और न ही अपने आसपास के वातावरण को अशांति से भर सकेगा , जरूरत है ,अपने क्रोध रूपी विकार को भग्ग करनें की ।

भग्ग का अर्थ है, नष्ट करना ।

काम से मुक्त हो जाए तो ब्रह्मचर्य अपनें आप ही घटित हो जायेगा , कोई भी मनुष्य फिर  बलात्कार नहीं कर सकता है । लोभ-लालच से मुक्त हो जाए तो चोरी नहीं करेगा । ओर न ही कोई मनुष्य किसी अन्य मनुष्य के अधिकार को छीन सकेगा ।

अहंकार नष्ट हो जाए तो सारी दीवारें जो एक मनुष्य ने दूसरे मनुष्य के बीच खड़ी कर रखीं है वो खत्म हो सकती है ।

यह दीवारें जाती व्यवस्था छूआछूत भेदभाव ,अमीर गरीब की है ।

राग से मुक्त हो जाए तो मैं ओर मैरे के बंधन टूट जायेंगे और सारा भेद खत्म हो जायेगा तो जो भ्रम है वो टूट जायेगा ।यह काया मैं नहीं हूं ,यह काया मैरी नहीं है , सत्य चेतना का प्रवाह हर इंसान के भीतर बह रहा है जब हम उसे अपने अनुभव से जान लेते हैं तो कोई मनुष्य किसी अन्य मनुष्य से भेदभाव नहीं कर सकता है । असमानता समाज में नहीं हो सकती है ।

तो जरूरत है मन के करम सुधार ने की ।

मन के करम कब सुधरेंगे जब हम अपनें विकारों के बंधन खोलेंगे ।

क्रोध के रहते कोई भी मनुष्य किसी को प्रेम नहीं कर सकता है जब तक क्रोध है तब तक हिंसा है, अशांति है ।

प्रेम प्रकट करनें के लिए क्रोध को भग्ग करना पड़ेगा । भग्ग का अर्थ है नष्ट करना

मनुष्य अपने समस्त विकारों को भग्ग करके ही खुद भगवान बन सकता है ओर जब अपनें। विकारों को भग्ग कर लेता है तो उसकी तलाश खत्म हो जाती है, उसका निर्वाण हो जाता है , अब वह अपनी मर्ज़ी का मालिक है , उसका मन करता है तो जन्म ले या न ले ।

जरूरत है सत्य की राहों पर चलने की । सत्य खोजने का मार्ग ही बुद्ध ने बताया है उस मार्ग का नाम आर्य अष्टांगिक मार्ग है जिसे विपश्यना भी कहते हैं।

Smt. Rajesh Shakya
Lecturer


0 Comments:

Post a Comment

THANKS FOR COMMENTS