मन की तरंग मार् लो बस हो गया भजन, आदत बुरी सुधार लो बस हो गया भजन।
हम अपना मंदिर अपनें साथ ही लाएं हैं। यह शरीर ही अपना मंदिर है ,प्रेम की जहां पूजा होती है ,वो घर प्रियतम का घर है । अपनें शरीर के भीतर जो घटनाएं घटित हो रही हैं ,उन घटनाओं की खबर नहीं है, क्योंकि मनुष्य कभी शरीर रूपी मंदिर में ठहरते ही नहीं हैं ।
सदगुरु कबीर साहब कहते हैं, "जरा हल्के गाड़ी हांको, ऐ लाल गाड़ी वाला" ।
किस गाड़ी की बात कर रहे हैं,कबीर साहब ,यह शरीर रूपी गाड़ी को जरा धीरे धीरे चलाओं, जरा ठहरो, यह जो दोड लगा रखी है , बाहर भटकते की उस दौड़ को हल्की करो, आराम से जिन्दगी जियो ।
मन को एक पल के लिए भी विश्राम नहीं है । मन काया रूपी मंदिर में ठहरे तो वो प्रियम , हमारे पास ही है । उम्र गुजर जाती है ,बाहर तलाश करनें में , जहां महबूब था। वहां एक क्षण के लिए ठहरे ही नहीं हो ,तो प्रियतम से , मिलना कैसे हो सकता है।
सदगुरु कबीर साहब कहते हैं कि, मन की तरंग मार लो बस हो गया भजन, आदत बुरी सुधार लो बस हो गया भजन।"
भजन कैसे करना है?
भंजन का अर्थ है, भग्ग करना। भंजन करना यानि नष्ट करना ।
जब तक मनुष्य अपनें काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेश, अहंकार आदि विषयों, विकारों को भंजन नहीं करेगा तब तक अपनी काया के भीतर ही जो प्रियतम है उसे देख नहीं सकता है ।
प्रेम की पूजा करने के लिए , क्रोध से मुक्त होना होगा । क्रोध है जहां , वहां प्रेम कैसे हो सकता है?
भजन करनें का तरीका क्या है?
विकारों को भग्ग करने का मार्ग ही बुद्ध का आर्य अष्टांगिक मार्ग है । जिसे अशोक चक्र या विपश्यना भी कहते हैं ।
जब तक मनुष्य अपनी काया के भीतर ठहरने का अभ्यास नहीं करेगा ,तब तक मनुष्य भंजन नहीं कर सकता है। भजन नहीं कर सकता है ।
सदगुरु कबीर कहते हैं कि "काया हिले न कर हिले, जिभ्या हिले न होंठ। वो तो नाम जैसा जपै ,बचे काल की चोट।।"
बात समझनी होगी ,जीभ से कुछ नहीं बोलना है ,न हाथ हिले ,यानि मोतियों की माला लेकर राम राम बोलकर हाथ भी नहीं हिलाना है , होंठ भी नहीं हिलाने हैं , तो समझना होगा सदगुरु कबीर किस तरह भजन करनें की बात बता रहें हैं ,जो मनुष्य एक बार विपश्यना कर लेता है वो इंसान इस बात को बहुत अच्छी तरह समझ जाता है कि सद्गुरु कबीर केवल सांस देख कर ध्यान करनें की बात कर रहे हैं। उसी मार्ग को बता रहें हैं जिस मार्ग की खोज बुद्ध ने की थी और वो मार्ग ही विपश्यना है। आर्य अष्टांगिक मार्ग ही काया के भीतर ,भंजन करने का मार्ग है । काया के भीतर ठहरने का मार्ग है ,शरीर रूपी गाड़ी को धीरे धीरे हांकने का मार्ग है ।
जरा हल्के गाडी हाको , जरा ठहरा , शान्त हो जाओ।काम क्रोध लोभ मोह ईर्ष्या द्वेश अहंकार के वशीभूत होकर जो दोड लगा रखी है उस दोड दोड को जरा सी धीरे करो तो सही, सत्य की राह में तुम चलो तो सही , धम्म की राह पर तुम चलो तो सही । सारा जीवन तुम्हारा बदल जायेगा।
प्रेम प्रेम सब कोई कहै, प्रेम न चिन्हे कोय। जा प्रेम साहेब मिलें, प्रेम कहावे सोय।।
जिस प्रेम से काया के भीतर प्रियतम मिल जाए ऐसा प्रेम करो , ओर वो प्रेम जो साहेब से मिला दे उसके लिए भंजन विकारों का करना होगा ।
इसलिए बुद्ध कहते हैं "आओं ओर देखो, आओ और देख लो सत्य चेतना का प्रवाह काया के भीतर ही बह रहा है ,उस परम सत्य चेतना को देखने का मार्ग ही मैं बता सकता हूं लेकिन चलना तो खुद को ही पड़ेगा यह हो नहीं सकता कि मैं चलूं ओर मंजिल पर तुम पहुंच जाओ । अपना रास्ता खुद तय करो, कोई ओर आपको मुक्त नहीं कर सकता है , दुख तुमने पैदा किए हैं ,काम क्रोध लोभ मोह ईर्ष्या रूपी विकार आप पैदा करते हो तो बताओ उन विकारों से कोन मुक्त करेगा? विकारों से मुक्त बनें तो दुख चक्र टूटे , विकारों से मुक्ति ही अनन्त दुखों से मुक्ति है । अपनें समस्त विकारों को भग्ग करके ही राजकुमार सिद्धार्थ गोतम बुद्ध हुए थे और हर इंसान खुद भगवान बनें , भगवान बन कर सत्य चेतना के प्रवाह को अपनी ही काया के भीतर खुद देख ले ऐसा मार्ग खोजा था।वो मार्ग ही विपश्यना है ,आर्य अष्टांगिक मार्ग है ।"
योग दिवस भले ही बुद्ध के नाम से न मनाया गया हो लेकिन बुद्ध ने ही योग यानि अष्टांग योग की खोज की है ।
धम्म चक्र पर चलें, और धम्म की गति बढ़ाय , धम्म पथ पर चलने से ही विश्व शांति की स्थापना होगी ।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई जैन। बोद्ध समुदाय के लोग तब तक धार्मिक नहीं है ,जब तक मनुष्य काम क्रोध लोभ मोह आदि विषयों, विकारों से ग्रसित है, इसलिए बुद्ध का धम्म पथ हर समुदाय के लोगों के लिए है , जहां एक साथ हर इंसान बिना भेदभाव के बैठकर इबादत कर सकें वो ही खुदा का घर है जहां हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई जैन बोद्ध समुदाय की कोई दीवार नहीं होती है वो स्थान ही परमात्मा का घर है ।
ओर जहां एक साथ सभी समुदाय के लोग आज भी बैठ कर ध्यान करते हैं वो स्थान केवल एक ही है ओर वो है विपश्यना सेंटर जहां लोग अपनी काया को मंदिर बनाकर अपनें प्रियतम से मुलाकात कर लेते हैं ।
कामी क्रोधी लोभी लालची मनुष्य धार्मिक नहीं होता है हां वह पाखंडी हो सकता है ।ब्रत उपवास पूजा पाठ कर्मकांड यज्ञ हवन करके उस परम सत्य चेतना को नहीं देख सकते हैं जो मनुष्य के भीतर है ।
जिस दिन मनुष्य अपने शरीर के भीतर उस सत्य को देख लेता है फिर वो मानव बाहर के छिलकों में नहीं भटकता है ।
सामाजिक संगठनों को धर्म न समझे मानवता के उपर छिलके हैं ।
धर्मवान मनुष्य कभी क्रोध नहीं करता है , गालियां नहीं देता है चोरी झूठ व्यभिचार नहीं करता है ।
हिंसा चोरी झूठ व्यभिचार एवं नशा करने वाला इंसान कभी भी धार्मिक नहीं हो सकता है ।
धर्म प्रेम है ,करूणा है , शांति है ,भाई चारा है ।।
बुद्ध कहते हैं समस्त अच्छे काम करना ही धम्म है ।
माता पिता की सेवा करना धम्म है। भूखे को भोजन कराना धम्म है, प्यासे को पानी पिलाना धम्म है। रोगियों की सेवा करना धम्म है ,कुदरत का कानून जो समानता पर आधारित है वहीं धम्म है ।
पानी सबकी प्यास बुझाता है ,सूरज की रोशनी सब पर समान रूप से सबको प्रकाशित करती है । आक्सीजन सबके प्राणों कुछ रक्षा करती है । पेड़ कभी भी अपना फल नहीं खाते हैं , देने वाले हैं ,सबको देते हैं इसलिए देवता हैं । जो मनुष्य सबका भला करे, सबको प्रेम शांति, करूणा, भाईचारा, समानता, बन्धुता देता रहे वही इंसान देवता हैं । जो मनुष्य सदा दूसरों के लिए अहित सोचे ,हिंसा करें दूसरों के अधिकारों को छीन ले , धर्म के नाम पर हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन समाज की दीवारें खड़ी करें वो मनुष्य लेवता है ।
लेता ही लेता है इसलिए लेवता है जो मनुष्य सबको देता रहे मनुष्य ही देवता है । इसलिए बुद्ध अपनी पूजा पाठ कर्मकांड यज्ञ हवन आदि नहीं करवाते हैं। वो कहते हैं धम्म पथ पर चलो ,ओर समस्त अच्छे काम करो बस यही मानव धम्म है । बुद्ध ने संसार के लोगों को केवल मानवता ही सीखायी है, ओर मानवता कायम करने का मार्ग दिया है उस मार्ग पर चलना होगा । आर्य अष्टांगिक मार्ग ही धम्म चक्र है जिसे विपश्यना भी कहते हैं आओ विपश्यना करें और जनहित में लगे, मन की तरंग मार् लो बस हो गया भजन, आदत बुरी सुधार लो बस हो गया भजन। विकारों की तरंग तो खत्म करो तो हो जायेगा भजन ।
(लेखिका- उपासिका राजेश शाक्य लेक्चर)
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