सदगुरु कबीर साहब ने क्यों किया पाखंडवाद का विरोध ?
मौकौ कहां ढूंढे रे बंदे मैं तो तेरे पास में ।
ना तीरथ में ना मूरत में,नाहि ब्रत उपवास में ।
ना मंदिर में ना मस्जिद में ना काबा कैलाश में ।
खोजी होय तो तुरत मिल जाए पर भर की तलाश में ।
किसी भी बाहरी आडंबर की जरूरत ही नहीं है । सदगुरु कबीर साहब ने ब्रत उपवास पूजा पाठ कर्मकांड यज्ञ हवन आदि करनें के लिए मना कर दिया लेकिन हम कब सुनते हैं अपनों की।
आज मनुष्य कुम्भ नहा कर पाप धो रहा है , कुंभ का मेला न लगा होता तो आज लोगों की लाशे गंगा में डुबकी न लगा रही होती यह कुंभ के मेले अज्ञानता के प्रतीक हैं ,
आज भी ब्रत उपवास पूजा पाठ कर्मकांड यज्ञ हवन करके आप पाप धो रहें हैं तो बुद्ध कहते हैं पाप करो ही मत ,पापों से बचो तो पाखंडो से भी बच जाओगे ।
सदगुरु कबीर साहब ने खूब समझाया लेकिन कबीर पंथियों को भी समझ नहीं आया सदगुरु कबीर साहब की वाणियो में हर जगह ध्यान की बातें हैं , वहीं मार्ग जो बुद्ध ने खोजा था उसी मार्ग की ओर इशारा करते हैं कबीर साहब लेकिन उस बात को हर इंसान समझ नहीं पाया और जो समझ कर बैठे हैं उन्होंने उसे छिपा दिया यह कह कर की यह विद्या तो अनमोल है हर किसी को नहीं बतायेंगे ।
अवधू भजन भेद है न्यारा,कोई जानेगा,जानन हारा ।
कोई जानने वाला ही जान पायेगा कि सद्गुरु कबीर साहब ने लोगों को समझाया कि किस प्रकार से भजन करना चाहिए । रात भर डोल मंजिरे बजाकर , गा गाकर भजन नहीं होता है यह तो उन लोगो को जगाने का तरीका है जो लोग वाणियो को सुनते नहीं है ,पढ़ते नहीं है ।
सदगुरु कबीर साहब की वाणियो को सुनकर बहुत लोग कबीर पंथी हुए हैं लेकिन असली भजन तो विकारों को भंजन करना है ।विकारों को भग्ग करके खुद भगवान बनकर निर्वाण प्राप्त करना है ।
सुरति फंसी संसार में तासे पड़ गया दूर,
सुरति उलट स्थिर करो आठों पहर हुजूर ।
सदगुरु कबीर कहते हैं कि यह मन जो काम क्रोध लोभ मोह माया ईर्ष्या द्वेश अहंकार में पड़ा है , संसार में लगा है , विकारों के वशीभूत होकर धन और चाहिए , पुत्र चाहिए, पुत्री चाहिए , उच्च पद चाहिए एक मकान नहीं अनेक मकान चाहिए , यह जो चाहिए, चाहिए है ना यही संसार है मन संसार में लगा है तो दुख चक्र भी चलता है तो साहब कहते हैं सुरति उलट स्थिर करो आठों पहर हुजूर।अपनें मन को उलट दो काया के भीतर ठहरो ,शान्त हो जाओ यह ओर अधिक चाहिए की दोड का भला कहां अंत है सुख-शांति चाहिए तो काया के भीतर ठहरने का अभ्यास करना होगा ।ओर विकारों से मुक्त हुआ इंसान ही दुखों से मुक्त हो सकता है । जन्म मरण के दुख चक्र को खुद ही रोक सकता है केवल धम्म पथ पर चलकर ।
ब्रत उपवास पूजा पाठ कर्मकांड यज्ञ हवन से यदि आप काम क्रोध मोह माया से मुक्त हो गय हैं तो यह खुद ही परिक्षण करें ।
अपनें ध्यान को इन विकारों से मुक्त करो और स्थिर होकर काया में बैठ जाओ तो जिसे बाहर खोज रहे हो वो आठों पहर हुजूर हमारे पास ही है ।
हुजूर जिसे आप ईश्वर अल्लाह राम खुदा वाहेगुरु ईशु आदि अनेक नामों से पुकारते हैं वो हुजूर आपकी काया के भीतर ही है। यह सद्गुरु कबीर साहब कहते हैं । जब सत्य काया के भीतर ही है तो पूजा किसकी करनी है? सोचना होगा ।
स्थिर होकर कैसे बैठते हैं ,अपने मन को कैसे शान्त कर लें यह सब सीखने के लिए आर्य अष्टांगिक मार्ग पर चलना होगा ।जिस मार्ग की खोज बुद्ध ने की है ।
उस पथ पर संसार के लोग चले हैं जापान के लोग टेक्नोलॉजी में विश्व में सबसे आगे हैं । बुद्ध की शिक्षाओं के पालन के कारण है , ब्रत उपवास पूजा पाठ कर्मकांड यज्ञ हवन करके टेक्नोलॉजी विकसित होती तो सबसे आगे आज भारत ही होता ,भूल गए लोग बुद्ध ओर सद्गुरु कबीर साहब की बात मानना ,तो अंधविश्वास और पाखंडवाद में उलझे हैं कुसुम बुद्ध का या कबीर साहब का तो हो नहीं सकता है ।
सदगुरु कबीर साहब ओर बुद्ध की उपस्थिति में पाखंडियों के पाखंड ठहर ही नहीं सकते हैं। इसलिए जरूरी है पढ़ें लिखे लोग बुद्ध ओर सद्गुरु कबीर साहब के इशारे को समझे और जितनी जल्दी हो सके पाखंडवाद को छोड़ दें ।
कर्म काण्ड करने से यदि आपके विकार भग्ग हो गय हैं तो समाज में इतनी पीड़ा ,मारपीट हिंसा चोरी झूठ व्यभिचार बलात्कार क्यों है?हमें सोचना होगा । सबसे पहले जो पढ़ लिख गए हैं उनको सोचना होगा सत्य की राह पर चलना होगा ।
सदगुरु कबीर साहब ओर बुद्ध की पूजा पाठ नहीं करनी है केवल मार्ग पर चलना है ।
बुद्ध कहते हैं हिंसा मत करो यानि बुद्ध के समय भी लोग हिंसा करते थे तो बुद्ध लोगों को समझाते थे कि हिंसा मत करो ।
बुद्ध कहते थे चोरी मत करो यानि मनुष्य चोर था तभी तो कहते थे , व्यभिचार मत करो , बलात्कार मत करो नशा मत करो यह सब बुरे काम होते थे यह बुरे काम इंसान कर ही न सके ऐसा मार्ग खोजा था बुद्ध ने ।
जितने भी बुरे काम हैं वो सबसे पहले मनुष्य के चित्त में पैदा होते हैं तो चित्त को सुधारने की जरूरत है चित्त कैसे सुधर जाएं ऐसा मार्ग खोजा था बुद्ध ने ।
ओर हिंसा का सम्बन्ध क्रोध से है जब मनुष्य को गुस्सा आता है तो गालियां देता है, ओर गुस्से में , हथियार उठाकर जान से भी मार डालता है इसमें कुसूर बुद्ध का कैसे हुआ ?
बुद्ध कहते हैं कि आप अपनें क्रोध से मुक्त हो जाओ , मेरी पूजा करके आप अपने क्रोध से मुक्त नहीं हो सकते हैं ?
इसलिए मैरी पूजा मत करना, मैं मार्ग बता सकता हूं ,उस मार्ग पर चलना ओर अपनें समस्त विकारों से मुक्त हो जाए,जब क्रोध से मुक्त हो जाओगे तब किसी को गाली भी न दे सकोगे जान से मार डालना तो बहुत दूर की बात है बुद्ध शिक्षक हैं , विश्व के प्रथम वैज्ञानिक बुद्ध हैं जिन्होंने सत्य खोजने का मार्ग दिया , बुद्ध के विचारों पर न चलकर मनुष्य खुद का ही नुकसान करेगा ।
बुद्ध उपदेश हैं , बुद्ध केवल कहते नहीं है कि क्रोध से मुक्त हो जाओ, कैसे क्रोध से मुक्त होना है, वो मार्ग भी खोजा जिस मार्ग पर चलने की जरूरत है । पूजा पाठ कर्मकांड यज्ञ हवन करके यदि मनुष्य क्रोध से मुक्त हो गया होता, तो यह हिंसा न होती ।
बुद्ध की प्रथम शील पालन करने के लिए आर्य अष्टांगिक मार्ग पर चलना होगा और जब मार्ग पर चलकर देखोगे तब पाओगे कि क्रोध चला गया ,क्रोध ही नहीं चला गया समस्त विकारों से मुक्त हो गय ।
समस्त विकारों से मुक्त हो जानें के लिए बुद्ध ने मार्ग दिया है उस मार्ग पर तो चलते नहीं है ओर दोष लगाते हैं लोग बुद्ध पर । बुद्ध की पूजा पाठ नहीं करनी है , बुद्ध ने अपनी काया के भीतर ही सत्य खोजा और हर इंसान सत्य ख़ोज ले वो मार्ग भी खोजा है , उस मार्ग पर चलकर ही विश्व शांति की स्थापना की जा सकती है। अपनें प्रियजनों से बिछड़ना भी तो दुख है, तो राजकुमार सुकिती गोतम जिन्हें सिद्धार्थ गोतम भी कहा जाता है क्या उन्हें अपनें प्रियजनों से बिछड़ने का दुख नहीं हुआ होगा? एक दिन तो हर इंसान का घर छुटता ही है , हम चाहे या न चाहे घर परिवार छोड़ कर जाना ही है ओर अपनो से बिछड़ने का दुख तो हर इंसान को होना ही है , जन्म भी दुख है ,नौ महिने मां के गर्भ में हाथ पैर बांधे मनुष्य उल्टा ही लटकता रहता है क्या उस पीड़ा से मुक्त होना नहीं चाहोगे, यह शरीर रोगी भी होगा और अंत में मृत्यु भी होगी क्या यह दुख नहीं है? राजकुमार सिद्धार्थ गौतम ने यह दुख चक्र देखा और यह दुख है , इस दुख से हर इंसान को मुक्त करूंगा ऐसा उपाय खोजूंगा कि हर मनुष्य सुखी हो जाए ओर छ: साल तक जितने भी शिक्षा देने वाले लोग थे सबके पास गय लेकिन सत्य नहीं मिला , सत्य चेतना का प्रवाह काया के भीतर है ओर जब दृढ़ संकल्प करके अंतिम ध्यान में बैठ गय कि जब तक जन्म ओर मृत्यु का कारण न खोज लूंगा ,तब तक हाथ नहीं आसन नहीं बदलूंगा, ओर बैसाख पूर्णिमा को सत्य ख़ोज लिया आखिर मनुष्य के बार बार जन्म लेना और बार बार मृत्यु का कारण क्या है? ओर निवारण क्या है?
अनंत दुखों से निवारण का मार्ग खोज लिया । संसार के लोगों को सुखी बनाने के लिए घर बार छोड़ा था।ओर वो मार्ग भी संसार के लोगों को बताया, 45 वर्षों तक सिद्धार्थ गोतम लगातार शिक्षा देते रहे थे ।उस मार्ग को ही आर्य अष्टांगिक मार्ग कहते हैं जिस पर चलने की जरूरत है तब पता चलेगा कि बुद्ध हमें अमृत देकर गय हैं , स्वयं ने तो निर्वाण प्राप्त किया ही जो भी मार्ग पर चला, अपनें अनंत दुखों से मुक्त हुआ, अनंत दुखों को भंजन करने का मार्ग आर्य अष्टांगिक मार्ग है ,आठ अंगों वाला जिसे विपश्यना भी कहते हैं ओर विपश्यना सेंटर आज भारत में भी है विपश्यना करके मनुष्य शील समाधि प्रज्ञा वान बनकर अपनें दुखों का भंजन करता है ऐसे मार्ग दाता हैं बुद्ध ।
बुद्ध के मार्ग पर चलें और अनंत जन्मों के दुखों से मुक्त होकर निर्वाण प्राप्त करें ।
बुद्ध को धन की कमी नहीं थी , परिवार के लोगों से भी झगड़ा नहीं था बहुत प्रेम करने वाली पत्नी थी यह सब छोड़कर क्यों गय यह सोचने का विषय है ,कि आखिर एक दिन तो सब छूट ही जायेगा तो फिर आज ही यह सब छोड़ कर दुखों से छुटकारा पाने का उपाय खोजा जाए और खोज लिया लेकिन मनुष्य बुद्ध के महान त्याग को में भी अपनी दुष्टता खोज लेता है ।उस अमृत को चखा ही नहीं जिस अमृत को बुद्ध ने खोजा है और तोहमतें लगाते हैं घर छोड़ने की , क्या आप स्थायी रूप से यहां बसने के लिए आए हैं?
दुख चक्र चलता है ,भव चक्र चलता है लेकिन मनुष्य अशोक चक्र पर नहीं चलता है ।धम्म पथ पर चलकर ही मनुष्य निर्वाण प्राप्त कर सकता है लेकिन चलना तो खुद को ही पड़ेगा।
बुद्ध तो मार्ग बताने वाले हैं और वो मार्ग ही विपश्यना है , आर्य अष्टांगिक मार्ग है ।
बुद्ध ओर सद्गुरु कबीर साहब की वाणियो को समझने की जरूरत है ओर सबसे पहले खुद को बदलने की जरूरत है ।
Writer@Rajesh Shakya, Lecture
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