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Friday, May 21, 2021

5/21/2021 11:56:00 AM

बुद्ध के धम्म पथ पर चलकर मनुष्य निर्वाण प्राप्त कर सकता है?



बुद्ध की शरण किसी राजकुमार सिद्धार्थ गोतम बुद्ध भगवान की शरण नहीं है, बुद्ध की शरण उस उपाधि की शरण है जो समस्त विकारों को नष्ट करके मनुष्य अपनी काया के भीतर प्राप्त करता है । बुद्ध की शरण ही ज्ञान की शरण है।

हर इंसान बुद्ध बनें, अरहत बनें, खुद भगवान बनें ऐसे मार्ग दाता राजकुमार सुकिती गोतम जिन्हें सिद्धार्थ गोतम बुद्ध भी कहते हैं उनका जन्म भी बैसाख पूर्णिमा पर हुआ ओर महाबोधि यानि बुद्धत्व की प्राप्ति भी बैसाख पूर्णिमा को ही हुई ओर महापरिनिर्वाण दिवस भी बैसाख पूर्णिमा को ही हुआ है ।

तीनों घटनाएं , जन्म, व महाबोधि ओर  महापरिनिर्वाण बैसाख पूर्णिमा के दिन ही हुआ इसलिए पूरे विश्व के लोग , बैसाख महोत्सव मनाते हैं महिने भर तक बुद्ध को याद करते हैं ।

बुद्ध सत्य है , काल्पनिक पुरुष नहीं है , राजकुमार सिद्धार्थ भगवान गोतम सच में पैदा हुए ओर उनकी अस्थियां हमें सबूत के लिए उपलब्ध हैं , पिपरहवा स्तूप से प्राप्त अस्थि कलश तो खुद उनके परिवार वालों का है , शाक्य गणराज्य के राजा ओर उनके भाई बहन पुत्र पुत्रियों द्वारा उनकी अस्थियों के लिए पूजा स्थल स्तूप बनाया गया है ।

पिपरहवा स्तूप की खुदाई से पता चला कि उसमें बुद्ध के परिवार वालों ने ही उनका नाम अधिकार पूर्वक सुकिती गोतम भगवंत लिखा है ।

उसी स्तूप को सम्राट अशोक महान ने  खुदवाया ओर एक कलश की अस्थियों को निकाल कर अनेक स्तूपों का निर्माण किया है । बुद्ध सत्य है , बुद्ध भारत की धरती के वो महान पुरुष हैं जिन्होंने खुद सत्य का मार्ग खोजा और उस मार्ग की जानकारी 45 वर्षों तक लगातार जन जन को देते रहे ।

जहां जहां चरण पडे गोतम के वो भारत की धरती देवभूमि कहलाती है , बुद्ध देवों के देव महादेव हैं क्योंकि बुद्ध के धम्म पथ पर चलकर मनुष्य विकारों से मुक्त बन अरहत हुए , खुद देवता हुए देने वाले को ही देवता कहते हैं इसलिए बुद्ध ने देव पुरुष बनाए , देवियां बनायी जो महिलाएं बुद्ध के धम्म पथ पर चलकर अरहत हुयी वो सतीवती कहलाती थी । बुद्ध की सतीवती भिक्षुणियों के याद में भी स्तूप बनें उनकी गोलाकार आकृति को सती माता के मंदिर के रूप में आज भी हम याद करते हैं ।

बुद्ध की सती सावित्री ,वो महिलाएं होती थी जो धम्म पथ पर चलकर चीवर धारण करके निर्वाण प्राप्त कर लेती थी और उनकी याद में उनके अस्थि कलश पर सती सावित्थी का स्तूप बना दिया जाता था वो हमारी कुल देवियां होती थी जो धम्म पथ पर चलकर अरहत हुयी ,सती सावित्थी हुती ,सतीवती हुयी है ।

सतीवती उन भिक्षुणियों को कहा जाता था वो विपश्यना साधना करके अपनें समस्त विकारों को भग्ग करके खुद भगवती हो जाती  थी , विपश्यना साधना एक दुर्गम काम है , अपनें चित्त से समस्त विकारों को नाश करना बहुत कठिन कार्य है , बहुत ही दुर्गम काम है इसलिए महिलाओं को देवी कहा गया आज कल दुर्गा उत्सव मनाने का जो रिवाज है वो अरहत बुद्ध की भिक्षु भिक्षुणियों का सम्मान उत्सव ही हम समझ सकते हैं , सतीवती की उपाधि उन महिलाओं के लिए जो चीवर धारण करके लगातार समाज की महिलाओं को बुद्ध की विपश्यना उनके घर में जाकर सीखाती थी और सत्य के मार्ग की जानकारी देती थी इस तरह घर घर में बुद्ध की शिक्षाओं को पहुंचाने का काम  महिलाओं ने किया आज भी महिलाओं की जरूरत है। पहले खुद विपश्यना की साधिका बने बुद्ध के धम्म पथ पर चलकर उसकी जानकारी ले फिर समाज की महिलाओं को बुद्ध के धम्म पथ पर चलने के लिए जागरूक करें तब समाज में हर घर में बुद्ध का धम्म पथ पहुंच सकता है ।

बुद्ध के देवी देवता अपने हाथों में हथियार धारण नहीं करते हैं वो तो सदा सबका मंगल करते हैं सबका भला ही करते थे किसी को मारते नहीं थे सदा शिक्षा देने का काम ही करते थे ।

बुद्ध की शरण में जाने की आज कितनी जरूरत है , आज भी समाज में बुद्ध के अरहत भिक्षु भिक्षुणियों की जरूरत है जो घर घर जाकर आर्य अष्टांगिक मार्ग की जानकारी दे सकें , बुद्ध का धम्म पथ घर घर में पहुंचे , मनुष्य शील समाधि प्रज्ञा वान बनें उसके लिए सबको एक बार विपश्यना साधना अवश्य करनी चाहिए और उस मार्ग की जानकारी अपनें परिवार को अवश्य बताएं ओर बुद्ध के धम्म पथ पर चलकर मनुष्य खुद भगवान बनें खुद बुद्ध बनें , सतीवती  महिलाएं भिक्षुणियां बन समाज को लगातार शिक्षित करें तब ही हम बुद्ध की शरण में जायेंगे अपना भी भला औरों का भी भला कर सकेंगे ।

बुद्ध की शरण भगवान बुद्ध की पूजा पाठ करनें से नहीं हो सकती है ।

बुद्ध की शरण में जाने के लिए बुद्ध के बताये मार्ग पर चलकर अपने चित्त से समस्त विकारों को भग्ग करके खुद भगवान बन सत्य चेतना के प्रवाह को काया के भीतर अनुभव करके बुद्धत्व प्राप्त करने से है ।

किसी भी प्रकार का पाखंड बुद्ध की शरण नहीं है ।

न ही बुद्ध की मूर्ति की पूजा करनी है सिर्फ अपने चित्त को सुधारने के लिए बुद्ध के बताये धम्म पथ पर चलना है। 

बुद्ध एक उपाधि है जिसे खुद अपने प्रयासों से हासिल करना है , खुद को ही शुद्ध करना है और परम सत्य चेतना के प्रवाह को अपनी अनुभूति से अपनी काया के भीतर देखना है ।

अपना दीपक खुद ही बनना है अपने समस्त विकारों को भग्ग करके खुद ही भगवान बनना है जब मनुष्य खुद ही भगवान बन सकता है तो फिर किसकी पूजा ? 

ब्रत उपवास पूजा पाठ कर्मकांड यज्ञ हवन किसलिए ? 

बुद्धत्व प्राप्त खुद को ही करना है , बुद्ध कहते हैं आओ और मैरे बताय मार्ग पर चल कर देख लो , सही लगे तो चलना वरना मत चलना कोई जरूरत नहीं है पूजा पाठ कर्मकांड यज्ञ हवन करनें की ।

हा हवन करना है तो अपनें समस्त विकारों का हवन करना है , अपने चित्त से अपनें समस्त विकारों की आहूति देनी है खुद को शुद्ध करना है। ओर विकारों की आहूति विपश्यना साधना से ही हो सकती है ।अपनें समस्त विकारों को विपश्यना साधना करके ही हर इंसान नष्ट कर सकता है ओर विकार नष्ट करके खुद ही भगवान होता है ।

बुद्ध के धम्म पथ पर चलकर मनुष्य निर्वाण प्राप्त कर सकता है ।    

        

(लेखिका : उपासिका राजेश शाक्य, लेक्चरर जिला कोटा राजस्थान)

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