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Saturday, May 22, 2021

5/22/2021 02:07:00 PM

बुद्ध का एक मात्र धम्म है जहां मनुष्य धम्म पथ पर चलकर खुद को शुद्ध करता है



धम्म की शरण किसी बोद्ध धर्म समुदाय की शरण नहीं है। धम्म की शरण तो उस सनातन सत्य धम्म की शरण है जिसे अणु अणु धारण करता है। जो सब प्राणियों पर समानता से लागू होता है । कुदरत का ऐसा कानून जो सब प्राणियों पर समानता से लागू होता है , सभी प्राणियों पर समानता से लागू होता है इसलिए सनातन है यानि प्राचीन है , पुराना है  किस अर्थ में पुराना नियम है कुदरत का देखिए जिस ने जन्म लिया है वो अवश्य ही मरेगा यह कुदरत का सनातन सत्य है, 

सद्गुरु कबीर साहब भी कहते हैं 

"आया है सो जायेगा, राजा रंक फकीर। 

एक सिंहासन चढ़ चलें, एक बंधें जंजीर

यह सनातन सत्य है , 

सद्गुरु कबीर साहब कहते हैं "जो उगे सो आंथवे, फूले सो कुम्हलाए। यह कुदरत का कानून है नियम है सनातन सत्य धम्म है, जो फूल खिले हैं ,वो मुरझा जायेंगे यह नियम हर प्राणी पर लागू होता है , अणु अणु इस नियम को धारण करता है , इसलिए सनातन है ।

बुद्ध ने इसी सनातन सत्य धम्म को देखने कि मार्ग खोजा।

विपश्यना क्या है?

इस प्रक्रिया को हम अपनी काया के भीतर देख सकते हैं, हमारा शरीर लगातार बन रहा है ओर बिगड़ रहा है , यानि उत्पन्न होने ओर नष्ट होने की प्रक्रिया लगातार  काया के भीतर घटित हो रही है , यह प्रक्रिया हर प्राणी के अंदर घटित हो रही है। उस सत्य चेतना के प्रवाह को अपनी काया के भीतर देखने का मार्ग ही विपश्यना है ।

इस जनम ओर मरण की प्रक्रिया को अपनी अनुभूति से देखने के लिए अपनी ही काया को प्रयोग शाला बनाकर , विपश्यना कर के हम अपनें अनुभव  से देख सकते हैं । जो सनातन सत्य चेतना का प्रवाह है , उसी प्रवाह को उस सत्य चेतना को ही , ईश्वर अल्लाह राम खुदा वाहेगुरु ईशु आदि अनेक नामों से , पुकारते हैं लोग ।

लेकिन उस सत्य चेतना के प्रवाह को किसी ने देखा नहीं है ,उसके लिए ही ,उसके नाम की भिन्नता के लिए ही अपने सम्पादकीय संगठन बन गय हैं , तेरा ईश्वर ओर मेरा  अल्लाह के नाम पर झगड़े हो गय हैं , मंदिर मस्जिद के झगड़े , हिन्दू मुस्लिम की दीवारें खड़ी हो गई हैं , लेकिन उस परम सत्य चेतना के प्रवाह को ,अपनी काया के भीतर देखने का मार्ग सब भूल गए हैं , उस सत्य चेतना के प्रवाह को देखने के लिए आर्य अष्टांगिक मार्ग पर चलना होगा ।

एक मात्र मार्ग है ,उस परम सत्य चेतना के प्रवाह को अपनी ही काया के भीतर देखने का ।

केवल एक मात्र मार्ग है, अन्य विकल्प नहीं है अन्य कोई मार्ग नहीं है ।

अपनी काया को प्रयोग शाला बनाकर आओ उस परम सत्य चेतना के प्रवाह को देख लो बस बुद्ध इतना ही कहते हैं कि मैं तो सिर्फ मार्ग बता सकता हूं लेकिन उस सत्य को देखने के मार्ग पर चलना तो खुद को ही पड़ेगा, एहि पस्सिको ।

आओ और देख लो ।

अपनें साढ़े तीन हाथ की काया के भीतर ही परम सत्य चेतना का प्रवाह है ।

उस प्रवाह को सुरति डोर से देख सकते हैं ।अपनी सांसों को देखना है ।

सदगुरु कबीर भी कहते हैं "सुरति डोर लागी रहें, तार टूट न पाए।

सुरति मतलब ध्यान। अपनी सांसों की डोर को पकड़ कर ही उस सत्य चेतना को देख सकते हैं ।

उस सत्य को देखने के लिए केवल अपनी काया ही पर्याप्त है , यह शरीर ही मंदिर है ,यह शरीर ही मस्जिद है , फिर मंदिर ओर मस्जिद के लिए झगड़ना ही बेकार है ।

सबकी काया खुदा का घर है , इसलिए तो सद्गुरु कबीर साहब कहते हैं ।

"दिल मत किसी का तोड़ रे बंदे ,यह तो घर खास खुदा का है।" हर इंसान का दिल ही  मंदिर है ।उसकी काया के भीतर ही सत्य सनातन धम्म का प्रवाह बह रहा है ।जब वह सत्य सनातन धम्म का प्रवाह शरीर में बहना बंद कर देता है तो मनुष्य का शरीर खत्म हो जाता है ।

शरीर खत्म हो जाता है लेकिन सत्य चेतना की धारा खत्म नहीं होती है , वो धारा तो पूरे ब्रह्मांड में बह रही है , अपनी अनुभूति से उस प्रक्रिया को देखने का मार्ग ही आर्य अष्टांगिक मार्ग है ।

उस धारा को अपने शरीर के भीतर ही बुद्ध ने देखा और हर इंसान देख ले ऐसा मार्ग भी खोजा उस मार्ग पर चलकर हर इंसान देख सकता है । इसलिए वो मार्ग भी सनातन है , प्राचीन है जिसने भी सत्य चेतना के प्रवाह को देखा है उसी मार्ग पर चलकर देखा है , हा मार्ग न बता सके , अन्य संत सिर्फ मार्ग का संकेत दिया , संकेतों में समझाया लेकिन बुद्ध ने  मार्ग बता दिया , उन्होंने अपने शरीर के भीतर की यात्रा जिस तरह शुरू की उस शुरू से लेकर अंत तक का पूरा तरीका समझा दिया है ।

बुद्ध की विपश्यना जिसे आर्य अष्टांगिक मार्ग भी कहते हैं उस मार्ग पर सामाजिक संगठनों की दीवारें खड़ी नहीं होती है । बुद्ध ने बोद्ध समुदाय भी नहीं बनाया यह काम तो उनके अनुयायियों का है , बुद्ध का धम्म पथ तो विश्व के हर इंसान के लिए है । सिर्फ सत्य चेतना के प्रवाह को देखने के लिए आपको राजी हो जाना है ।

ओर नहीं देखना है तो अंधविश्वास और पाखंडवाद से मुक्त रहें ।

क्योंकि आपके ब्रत उपवास पूजा पाठ कर्मकांड यज्ञ हवन करके तो आप सत्य चेतना के प्रवाह को नहीं देख सकते हैं । सत्य काया के भीतर है , उसे देखने के लिए घी तेल अन्न की आहूति नहीं देनी है ,उस परम सत्य चेतना के प्रवाह को देखने के लिए तो अपने काम क्रोध लोभ मोह इर्ष्या द्वेष अहंकार की आहूति देनी है , विकारों से मुक्त हो जाए , आग में घी तेल नहीं जलाना है , हवन कुंड की जरूरत नहीं है । हवन करना है तो अपनी काया के भीतर सांसों को देखकर ,अपने विकारों को नष्ट करना है यह विद्या सीखनी होगी ।

विश्व शांति के लिए बुद्ध के बताये मार्ग पर चलना होगा ।

विकारों से मुक्ति ही  , निर्वाण है ।

जब क्रोध लोभ मोह माया पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं फिर अशांति कैसी ?

शान्ति ही शान्ति होगी ।

नमक की गांठ जब पानी में डाल दी जाती है ,तो वह खुद पानी बन सिन्धु में मिल जाती है ।इसी तरह मनुष्य अपनें विकारों को भग्ग कर देता है तो वह भी सत्य चेतना के प्रवाह में बह जाता है उस परम सत्य चेतना के प्रवाह में विलीन होकर जीता है ओर कह उठता है , सद्गुरु कबीर की तरह कि हे मनुष्य ,रहना नहीं देश विराना है ।

यह संसार कांटे की बाड़ी उलझ पुलझ मर जाना है ।

इस संसार में रहते हुए ही शान्ति से जीओ और जो सत्य धम्म पथ है उस पथ का अभ्यास करें ,एक दिन सफलता मिलेगी ही, विकारों से छुटकारा मिलेगा ही लगातार अभ्यास की जरूरत है , सत्य की राह पर प्रथम कदम उठाने की जरूरत है ।

जैसे नदियां बहती है जल की धारा बहती है ,उस जल की धारा को बहते हुए देखने के लिए नदी के किनारे  बैठने की जरूरत है तट पर शांत होकर बैठ कर सिर्फ देखना है ।


धम्म की  शरण उस कुदरत के कानून की शरण है जो समानता, बन्धुता मित्रता सीखाता है , बुद्ध ने धम्म पथ दिया है ,धम्म का मार्ग दिया है , उस मार्ग पर चलकर ही हम धम्म को जीवन में  धारणा कर सकते हैं ।

धम्मं शरणं गच्छामि का अर्थ है कि मैं धम्म की शरण में जाती हूं जो कुदरत का कानून है ।

सूरज की रोशनी सबके लिए है बिना भेदभाव के सबको रौशनी मिलती है । 

पानी सबकी प्यास बुझाता है , चाहे दुनिया का कोई भी मनुष्य पी ले,  हवा सबको सुखाती है ।

अग्नि का धम्म है जलना ओर जलाना अग्नि सबको जलाती है कोई भेदभाव नहीं है इसी तरह बुद्ध का धम्म पथ भी हर इंसान के लिए है। कोई भेदभाव नहीं है ।

समुदाय हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई जैन बोद्ध की दीवारें बुद्ध के धम्म के लिए नहीं है बुद्ध का एक मात्र धम्म है जहां मनुष्य धम्म पथ पर चलकर खुद को शुद्ध करता है , विकारों से मुक्त खुद ही होता है ,ओर बुद्धत्व को प्राप्त करता है इसमें किसी भी आडम्बर की जरूरत ही नहीं है , बुद्ध मार्ग दाता हैं , बुद्ध के धम्म पथ पर चलकर मनुष्य अपने समस्त विकारों का भंजन करके खुद ही दुःख भंजक बनता है , खुद ही अपनें विकारों को भग्ग करके भगवान बनता है और परम सत्य चेतना के प्रवाह को अपनी काया के भीतर देख लेता है , उस परम सत्य चेतना के प्रवाह को देखने के बाद मनुष्य अपनें प्रयास से खुद निर्वाण अवस्था को प्राप्त करता है , सदगुरु कबीर साहब भी कहते हैं कि हंसा सुध पर अपनों देसा, तुझे इस संसार को छोड़कर जाना ही है तो अपनें तन की भी खबर कर ले , खुद को जान ले । यहां आए तेरी सुध-बुध बिसरी आन फंसे परदेशा । यह तो विदेश  है असली जगह तो सत्य चेतना के प्रवाह में विलीन हो जाने में ही है ।

धम्म चक्र पर चलें और धम्म वान बनें आओं मानवत धम्म की स्थापना करें ।धम्म पथ चुने ।

जहां समानता बन्धुता मित्रता ओर भाई चारा है ।

अपनें शरीर को ही खुदा का घर समझे और हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई जैन बोद्ध समुदाय की दीवारें खड़ी न करें ।

दीवारें हैं सामाजिक समुदाय हैं लेकिन इन समुदायों के बीच रहने वाले लोग सभी काम क्रोध लोभ मोह इर्ष्या अहंकार से मुक्त नहीं हैं इसलिए धार्मिक भी नहीं हैं ।

एकं एक चरे धम्मं। एक एक व्यक्ति धम्म के पथ पर चले ।आर्य अष्टांगिक मार्ग पर चले तब शान्ती की स्थापना होगी ।

एक एक व्यक्ति जब अपनें विकारों से मुक्त बन जायेगा तब सारे समुदाय के लोग सुख शांति से जी सकते हैं ऐसा  बुद्ध शासन में हुआ था जब आठों गणराज्य के राजाओं ने बुद्ध के मार्ग का अनुसरण किया था सम्राट अशोक महान के शासन काल में हुआ था जब जनता भी विपश्यना साधना करती थी  । उसके लिए अनेक विहारों का निर्माण किया गया था । 

(राजेश शाक्य, व्याख्याता जिला कोटा राजस्थान)

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