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Monday, May 24, 2021

5/24/2021 09:51:00 AM

"त्याग"....? त्याग बुरे कर्मों का करें तो आप त्यागनिष्ठ कहलाओगे। 





यदि जीवन में हमे यह बोध हो जाए कि, "यहां हमारा कुछ भी नही है तो त्याग का प्रश्न ही नही उठता, त्याग व्यर्थ हो जाता है।"  जो स्वयं को त्यागी या त्यागनिष्ठ कहते हैं, वे पक्के पदार्थवादी हैं, आत्मबोध होते ही पदार्थ हमसे इतने दूर हो जाते हैं जितने दूर वे पहले से है।"

मतलब जो हमारा है ही नहीं, हम उसका त्याग कैसे कर सकते हैं?

समझना होगा, हम कहां जा रहे हैं, क्या कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं? इसका सीधा व सरल मार्ग तथागत बुद्ध ओर कबीर साहब बता कर चले गए। 

त्याग किसका? करना है, अपने मन में उठतीं इच्छाओं का। बुरे विकारों का। तब आप इस संसार से मुक्त हो सकोगे।

अब सवाल यह है कि इसका सरल रास्ता क्या है क्या सिस्टम है? क्या प्रक्रिया है? क्या कबीर साहब ने या तथागत गौतम बुद्ध ने हमें इस प्रक्रिया को समझाया है?  कि, "अपने मन से अपने विकारों को कैसे दूर किया जाए?"  और कैसे अपने इन इच्छाओं को जो संसार में लगी हुई है उनको दूर किया जाए?" या इससे छुटकारा कैसे मिले? हमारी इच्छाएं जो मन की इच्छाएं हैं वह कैसे खत्म हो इसका रास्ता सीधा सरल किस तरह से बताया गया है? 

तो जवाब हां में होगा। यदि हम कबीर साहब के दोहों को या उनके पद, रमैनी, उलटबांसियां हैं उनको ध्यान से और विवेक से विचार करते हैं। तो हमें उनमें इसका रास्ता मिल सकता है कि "हम इस संसार सागर से कैसे मुक्त हो और कभी इस संसार सागर में वापस नहीं आए ? और हमें अजन्मी अवस्था मिल जाए? साहब के भजनों को पढने, गाने बजाने से नहीं बल्कि उनके द्वारा बताए रास्ते पर चलकर ही सत्य को जान सकते है। 

तथागत बुद्ध ने भी 2500 साल पहले इसी रास्ते को खोजा ओर उसे हर इंसान को 83 साल की उम्र तक बताया जिसे हम "विपश्यना" कहते हैं।

यदि हम तुलनात्मक अध्ययन करते हैं तो यही पाते हैं कि जो बात तथागत बुद्ध ने 2500 साल पहले कही वही बात ईसा मसीह ने 2000 साल पहले कही या बुद्ध की बात को आगे बढ़ाया, फिर 1500 साल पहले हजरत स. अ. व. मुहम्मद साहब ने इस्लाम के जरिए लोगों को बताया, उनके बाद गुरु नानक देव ने कहा, फिर उनके बाद आज से 600 साल पहले कबीर साहब ने कहा। बात या सत्य एक ही है, कि लोगों के दुःख दूर कैसे हों। संसार के लोगों को रास्ता दिखा दिया चलना तो लोगों को है। हम महापुरुषों की बात बर चलें नहीं ओर सीधा सोर्टकट अपनाने लगें तो जिस परिणाम या मंजिल की बात हम सोच कर बैठे हैं वो कैसे हांसिल होगा। 

अब सवाल यह आपके मन में उठ रहा होगा है कि बुद्ध ने क्या बताया? 


पहला- शील

पंच शील: 1. सत्य बोलना। 2. चोरी नहीं करना। 3. व्याभिचार नहीं करना। 4. हिंसा नहीं करना। ओर 5. नशा नहीं करना। इन पंचशीलों का पालन मनुष्य को अपने जीवन में जिस उम्र तक जिये पालन करे। 

दूसरा- समाधि 

जब मनुष्य शील का पालन करता है तो वह अपने जीवन में आने वाली हर समस्या का समाधान करने लगता है।

तीसरे पायदान पर आती है - प्रज्ञा

यानी प्रत्यक्ष ज्ञान

यह तब होता है जब मनुष्य शील का पालन करते हुए समस्याओं का समाधान करने लगता है तो उसे फिर अपने अनुभव के आधार पर ज्ञान होता है। अनुभव के आधार पर होने वाले ज्ञान को ही प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं। जो खुद को होता है।


जिसे तथागत बुद्ध ने आर्य अष्टांगिक मार्ग कहा। तथागत बुद्ध ने कहा था कि मैं तुम्हें रास्ता बता रहा हूँ जिस पर मैं चला हूँ जो मुझे मिला है उस पर तुम्हें चलने की सलाह दे रहा हूँ, मैं मार्ग दाता हूँ मोक्ष दाता नहीं। यह मार्ग विपश्यना का मार्ग है। खुद अनुभव कर के देख लो। जैसे बुद्ध मैं हुआ वैसे ही आप भी हो जाओगे। 

सदगुरु कबीर भी विपश्यना की बात ही कहते है, 


जैसे, "कर हिले न काया हिले, जिव्हा हिले न होंठ ।" अपने मन में उठने वाले बुरे विकारों को भग्न या खत्म या नष्ट करके ही मनुष्य भगवान कहलाता है। सभी अच्छे कर्मों को करना ओर सभी बुरे कर्मों को नहीं करना ही मनुष्य का धर्म है। #त्याग बुरे कर्मों का करें तो आप त्यागनिष्ठ कहलाओगे। 

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@Tikam Shakya

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