झगड़ा वहीं मिटेगा यार, सच्चे सदगुरु के दरबार।।
शिक्षक राष्ट्र निर्माता हैं और सच्चे शिक्षक हैं , तथागत गौतम बुद्ध ओर सद्गुरु कबीर साहब सच्चे गुरु के पास जाकर ही सारा झगड़ा मिटेगा , सच्चे शिक्षक ही मानवता की स्थापना कर सकते हैं ।
एक पाखंडी शिक्षक पूरे बच्चों को पाखंडवाद में उलझा देगा , कर्मकांड यज्ञ हवन पूजा पाठ ब्रत उपवास पाखंड हैं । यह सद्गुरु कबीर साहब की वाणियो को पढ़कर हम समझ सकते हैं , कैसे शिक्षक हैं जो पढ़ लेते हैं ,पढ़ा भी देते हैं कि '"पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजु पहाड़ । ताते यह चाकी भली पीस खाय संसार।
लेकिन जीवन में इन वाणियो को धारण नहीं करते हैं । पत्थरों की पूजा करके धार्मिक कहलाते हैं । सच्चे गुरु की शरण आना है तो गुरू की बात माननी होगी लेकिन बात को मान ही ले इसके लिए सदगुरु कबीर साहब ने आगे समझाया है कि पाखंड को छोड़ देंगे तो करेंगे क्या ?
अपनी ही काया के भीतर परम सत्य चेतना का प्रवाह है ,उसे खोजने का मार्ग भी सद्गुरु कबीर ने बताया है, "बंक नाल का मारग जोहि, साहंग शिखर पर आसन लाओ ,लगा समाधि मिलो ब्रह्म से , जब उतारोगे पार ।
इन पंक्तियों में बात स्पष्ट है कि नाक के दरवाजे पर अपनें मन को चोकीदार की तरह पहरे पर बैठा दो । आते जाते सांस को देखो उस सांस को देखो जो अंदर आ रहा है,ओर नाक के द्वारा से ही बाहर जा रहा है ।
सांसों को देखते देखते परम सत्य दिख जाए । कबीर साहब ने सत्य चेतना के प्रवाह को ब्रह्म भी कहा है , ओर उस ब्रह्म से ध्यान के माध्यम से सहज समाधि घटित होगी और जिसे बाहर खोज रहे हैं उसे भीतर देख लो ।
सदगुरु कबीर साहब ऐसे ही मना नहीं करते हैं पत्थरों को पूजने से कर्मकांड यज्ञ हवन का विरोध अवश्य करते हैं लेकिन भीतर सत्य खोजने का मार्ग भी बताते हैं। पाखंडवाद से आजाद करना चाहते थे कबीर साहब ओर समस्त समाज को सहज समाधि तक ले जाकर प्रज्ञा वान बनाकर जन्म मरण के बंधन से मुक्त करना चाहते थे ।
सदगुरु कबीर साहब ने भी अपनी वाणियो में विपश्यना साधना की जानकारी दी है ।
जिस आर्य अष्टांगिक मार्ग की खोज तथागत गौतम बुद्ध ने की थी उसी मार्ग पर चलने की सलाह सदगुरु कबीर साहब भी दे रहे हैं लेकिन क्या कबीर पंथी साधु संत समाज यह साधना सीखा पा रहे हैं ?
जितने भी आचार्य हैं क्या वो अपने भक्तों को साधना का अभ्यास करना सीखा रहे हैं यदि नहीं तो गलत है। अब ठीक से विपश्यना साधना सीखाए ओर कबीर पंथ आज जो मनुवाद की कैद में है उसे मनुवाद से आजाद करें ।
यह जिम्मेदारी शिक्षकों की भी है पाखंडवाद छोड़कर सहज समाधि का अभ्यास करें और अपने विद्यालय में पढ़ रहें बच्चों को आनापान मेडीटेशन सीखाए ।
यह जिम्मेदारी अपने परिवार वालों को भी लेनी होगी भारत देश को पाखंडवाद से आजाद करना है तो सबके घरों में आनापान साधना अवश्य हो ओर परिवार का मुखिया पूरी विपश्यना विद्या सीखें और इस साधना का लाभ लें ।
सदगुरु कबीर साहब आपसे कर्मकांड यज्ञ हवन छीन रहें हैं तो बहुत शानदार विद्या भी तो दे रहे हैं ।
अंधविश्वास छोड़कर ध्यान करें जिससे मानवता की स्थापना होगी , मंदिर मस्जिद के झगड़े खत्म होंगे ।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई जैन बोद्ध समुदाय की दीवारें खड़ी नहीं होगी ।
क्योंकि मनुष्य की काया के भीतर ही परम सत्य चेतना का प्रवाह है मनुष्य जहां चाहे शांती से बैठकर ध्यान कर सकता है उसे किसी भी देवालयों की जरूरत नहीं है ।
यह काया ही शिवालय है , अपनी काया को ही देवालय बनाना है ओर खुद को ही देवता बनना है ।
विपश्यना विद्या के माध्यम से अपने विकारों को भंजन करके ही असली भजन कर सकते हो ।
विकारों से मुक्त होकर ही आवागमन के बंधनों से बंधन मुक्त हो सकतें हैं ।
बंदी छोड़ कहलाते हैं सदगुरु कबीर साहब क्योंकि सारे बंधनों से मुक्त करने का मार्ग बताते हैं ।
यदि आप सच्चे शिक्षक हैं तो समाज में भाईचारा समानता बन्धुता मित्रता कायम करें , हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई जैन बोद्ध समुदाय की दीवारें खड़ी न करें भारत देश की जनता अब इन पाखंडों से आजाद होना चाहती है उसमें शिक्षकों की बहुत बड़ी भूमिका होगी ।
ओर उन शिक्षकों की भी जो रिटायर हो चुके हैं वो लोग भी विपश्यना साधना करें और समाज के लोगों का मार्ग दर्शन करें ।
शिक्षक ही नहीं संविधान से नौकरी करके घर बैठे लोग भी समाज को सही दिशा दें ,दस दिन विपश्यना साधना सीख कर लोगों के बीच समाज में जाकर सीखाए ,ओर हर घर को कर्मकांड यज्ञ हवन आदि से आजाद करें ।
यह कुंभ के मेले यह गंगा स्नान यह अस्थि विसर्जन हमारी अज्ञानता के प्रतीक हैं । शील समाधि प्रज्ञा वान बनें और समाज को जागरूक करें ।
दीवारें खड़ी करना आसान है?
दीवारें तो जगत गुरु शाक्य मुनि , शाक्य सिंह गोतम बुद्ध ओर सद्गुरु कबीर के नाम की भी खड़ी की जा सकती हैं ओर की गयी हैं , इसमें फायदा किन लोगों को है यह सोचने कि विषय है ।
जागरूक बनें और अपने सदगुरुओ की बात मानें ।
साखी आखी ज्ञान की ये,समझ देख मन माहि।
बिना साखी संसार का ये, झगड़ा छूटत नाहि ।
अपनी काया के भीतर साक्षात्कार किए बिना यह जो ईश्वर के नाम पर झगड़ा है वो छूटेगा नहीं । कबीर साहब की ज्ञान की बात को अनुभव से जानो , साक्षात्कार करो ,तब संसार में जो भेदभाव है छूआछूत है सम्प्रदाय की दीवारें हैं यह जो बात बात के झगड़े हैं वो तभी मिटेंगे जब हम सद्गुरु बुद्ध कबीर साहब जी की वाणियो की शरण में आ जायेंगे ।
सदगुरु कबीर साहब ने अपनी काया के भीतर के ब्रह्म को कैसा बताया है ?
तो जानें "सोहंग शिखर पर पुरुष विराजे,
होंठ कंठ जिभ्या नहीं उनके। कहै कबीर सुनो भाई साधो, ज्ञान बढ़े असवार ।
यानि जो ब्रह्म है जिसे बुद्ध ने सत्य चेतना का प्रवाह कहा है उसका कोई रूप नहीं है ,उसके होठ कंठ ओर जीभ भी नहीं है यानि वो केवल एक उर्जा है , चेतना का प्रवाह है ,उस परम सत्य चेतना के प्रवाह को देखने का मार्ग ही बुद्ध ने खोजा और सदगुरु कबीर साहब भी उसी मार्ग को बता रहें हैं ।एक मात्र मार्ग है जिसे विपश्यना साधना कहते हैं , विश्व शांति के लिए आओ विपश्यना साधना करें और समाज में भाईचारा कायम करें ।
(लेखिका राजेश शाक्य लेक्चरर जिला कोटा राजस्थान)
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