गंगा में डुबकी लगाने से पाप नहीं धुलेंगे, हांं गंगा जरूर मैली हो जायेगी?
सदगुरु कबीर साहब ने कहा है, "खाली नहाय धोय से सत्य नाहि मिले रे, मनवा नहाय रहयो संसार, नहाय धोय नीत माछली ये, तोय बास नाहि जाए ।
सदगुरु कबीर साहब लोगों को समझाते हैं कि भाईयों गंगा नहाने से कुछ नहीं होगा ,ये जो तुम तीर्थ यात्राएं करते हो यह सोच कर की हमने जो पाप किए हैं ,वो नष्ट हो जायेंग , तो तुम्हारा भ्रम है । गंगा नहाने से या गंगा में डुबकी लगाने से पाप नहीं धुलेंगे ,हा गंगा जरूर मैली हो जायेगी जो हो गयी है।
आज गंगा मैली हो गयी है , ये अस्थि विसर्जन, करके आप गंगा को मैली करते हो, मरने के बाद अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करके खुद डूबकी लगाते हो तो सुनो भाईयों सदगुरु कबीर साहब समझाते हैं कि मछली तो रात दिन पानी में ही रहती है ,जल के बिना एक क्षण जिन्दा नहीं रह सकती है , हमेशा गंगा में ही पड़ी रहती है तो भी उसकी बास यानि मछली की जो गंध है वो नहीं जाती है , इसलिए यह जो आडम्बर हैं ,इनको छोड़ दो । तीर्थ यात्राएं करनें से कुछ पुन्य नहीं मिलता है , पुन्य तो अच्छे काम करने से ही मिलता है ।
इसलिए सद्गुरु कबीर साहब कहते हैं कि
लटको छोड़ दें रे, मनवा असली फकीरी साध ।
यह जो दिखावा है ,बाहर के जो कर्मकांड है, उनको छोड़ दे, असली फकीरी तो खुद को विकारों से मुक्त करने में है । काया के भीतर जो काम क्रोध लोभ मोह इर्ष्या द्वेष अहंकार आदि विषयों का भंडार है , उन विकारों को भग्ग कर । यानि नष्ट कर दे ,अपने चित्त को सुधारने की जरूरत है । यज्ञ हवन करके ब्रत उपवास पूजा पाठ कर्मकांड करके अपनें चित्त को विकारों से मुक्त नहीं कर सकते हो, इसलिए यह सब आडम्बर बेकार हैं ।
सदगुरु कबीर साहब कहते हैं
जटा बढ़ावे, सत्य नाहि मिले रे, मनवा सब जग लेता बढाय।
जटा बढ़ावे रीछडो रे पग पग गोता खाए ।
जटाधारी लोग जटा बढ़ाकर सत्य को पाना चाहते हैं तो कबीर साहब उनको भी समझाते हैं कि जटा बढ़ाने से परम सत्य चेतना का प्रवाह जो काया के भीतर है वो नहीं मिलेगा।
रीछ होता है उसके तो पूरे शरीर पर ही बाल होते हैं तो क्या वो सत्य को देख सकता है ?
सत्य को काया के भीतर देखने के लिए बाहरी आडंबर की जरूरत ही नहीं है ।
यह जो लटके, झटके करता है उन्हें बंद कर दे और जहां सत्य चेतना का प्रवाह है उसे अपने अनुभव से जान।
सारी खट-पट छोड़ कर शांत हो जा ।
सदगुरु कबीर साहब ने मनुष्य को कितना समझाया है लेकिन मनुष्य समझता ही नहीं है,आज भी ऐसे लोग हैं जिनको कितना भी समझा लो वो मानते ही नहीं हैं ।
कर्म काण्ड ब्रत उपवास पूजा पाठ करके दुखों से मुक्ति पाना चाहते हैं । सदगुरु कबीर साहब जी ने जो सत्य कहा है उसका असर होता ही नहीं है , मनुवादियों के पाखंड में उलझकर अपना जीवन नष्ट करता है।
यह आडम्बर मनुष्य को काल के गाल में ले जाते हैं।असत्य की राहों पर चलकर मनुष्य अपना ही अहित करता है, अज्ञानता के कारण जो अनमोल खजाना उसकी काया के भीतर है उस खजाने से दूर हो जाता है ओर बाहर भटकता है।
कस्तुरी कुंडली बसे ओर मृग ढूंढे, वन माहि ,ऐसे घट घट राम हैं , दुनिया देखे नाहि ।
सदगुरु कबीर साहब के राम हर इंसान की काया के भीतर है ,उनका चित्र नहीं बना सकते हैं ,न ही सदगुरु कबीर साहब के राम का मंदिर ही बनाया जा सकता है ।
अपनी काया को ही मंदिर बनाकर उस सत्य को देख सकते हैं ,जिसे कबीर साहब ने ,राम ,जीव ओर ब्रह्म भी कहा है ।
वैसे ही जैसे मृग की नाभि में कस्तुरी होती है लेकिन अज्ञानता के कारण मृग उसकी सुगंध के पीछे लगातार दोडता है और अंत में अपने प्राण त्याग देता है लेकिन उस सुगंध उसे मिलती नहीं है क्योंकि अपनें मन को शांत करके उसे अपनी काया के भीतर देखना नहीं आता है ।
जो मनुष्य, इंसान होकर भी जानवरों की तरहा बाहर ही भटकता है उसका अंत भी हिरण की तरह ही होता है ।
सोचने समझने की ताकत तो इंसान के पास है , उसके पास मन है , मनुष्य तो मनन कर सकता है बेचारे पशुओं में तो मनन करने की क्षमता नहीं है , लेकिन जो मनुष्य सदगुओ की आवाज नहीं सुनते हैं , वो भी मानव होकर भी पशुओं की तरहा बाहर भटकते हैं ।
सदगुरु कबीर साहब जैसे गुरु पाकर भी मनुष्य उनकी बात न समझे तो फिर कुछ नहीं हो सकता है । हमें अपनों पर भरोसा कम है और पाखंड वाद पर भरोसा ज्यादा है , इसलिए जो लोग बिल्कुल भी पढ़ें लिखे नहीं है या हमसे कम पढ़े लिखे हैं , लेकिन वो झाड़-फूंक करते हैं ,जटा बढ़ाकर बाबा बन गय हैं ,ओर खुद को किसी उपरी शक्ति के चमत्कार दिखाने वाले बन कर लोगों को ठगने का काम करते हैं और आपने देखा होगा उनका दीमागी स्तर कैसा है ? ओर ऐसे पाखंडियों के चक्कर में सबसे पहले महिलाएं आ जाती है ओर उनके पति जो डाक्टर हैं या अध्यापक है और भी किसी पद पर सरकारी काम करते हैं ,ऐसे लोग भी अंधविश्वासों के शिकार हो रहे हैं ।
आज समाज को सदगुरु कबीर साहब की वाणियो की जरूरत है , अंधविश्वास और पाखंडवाद से एक जंग होनी है ,और वो जंग लड़ने की जरूरत है ।
कबीर साहब कहते हैं कि यह मन बड़ा है लालची ,समझे नहीं गंवार , भंजन करने को आलसी खाने को तैयार ।
अपनें विकारों का भंजन करके ही मनुष्य भजन करता है , गाने बजाने से विकारों से मुक्ति नहीं मिलेगी , साहब की वाणियो को गाकर उनका अर्थ समझ पर असली भजन अपनें विकारों से मुक्ति पाना है उसके लिए सदगुरु कबीर साहब ने सहज समाधि के लिए सूत्र दिया है कि अपनी सहज स्वाभाविक सांस को देखो ।ओर इस आनापान साधना का अभ्यास करें तो मन विकारों से मुक्त होने लगेगा ।
बुद्ध ने मनुष्य के चित्त से समस्त विकारों को दूर करने का मार्ग बताया आज वो आर्य अष्टांगिक मार्ग हमारे पास है, जिसे विपश्यना भी कहते हैं जरूरत है खुद को उस मार्ग पर चलने के लिए तैयार करनें की ,जब सत्य की राह पर चलेंगे तब ही पाखंड वाद से आजाद हो सकते हैं और अपने परिवार को समस्त समाज को आजाद कर सकते हैं ।
@TikamShakya, Sr. Journalist
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