"क्या बंगालियों के जाल में फंस कर मात खाई,गुजरातियों ने?
2014 में पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई भाजपा ने देश के अनेक राज्यों में भाजपा की अपनी सरकारी बनाई ! कुछ राज्यों में जोड़ तोड़ कर तो कुछ राज्यों में चुनाव जीतकर सरकारें बनाई ! भाजपा विभिन्न राज्यों में मजबूत क्षेत्रीय दलों के कैडर में सेंधमारी कर अपने आप को मजबूत करती रही है, और अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों के केडर के सहारे अपनी सरकार भी बनाती रही है।
हाल ही में जिन पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए हैं उनमें से पांडुचेरी पश्चिम बंगाल असम और केरल में भाजपा ने अपना प्रयास जारी रखा और क्षेत्रीय दलों के सहारे पांडुचेरी और असम में भाजपा सत्ता मैं आ गई, लेकिन पश्चिम बंगाल में भाजपा पहली बार मात खा गई ! भाजपा ने पश्चिम बंगाल मैं सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के मजबूत के डर को तोड़कर भा जा पा में शामिल किया था और उसी कैडर के सहारे भा ज पा बंगाल की सत्ता पर काबिज होने का प्रयास कर रही थी !
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो, कुछ महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाएं अचानक से तेजी के साथ घटी जिनमें सबसे बड़ी घटना तृणमूल कांग्रेस के बड़े नेताओं का तृणमूल कांग्रेस से अलग होकर भाजपा में शामिल होना था जिसमें शुभेंदु अधिकारी और मिथुन चक्रवर्ती का भाजपा में शामिल होना प्रमुख था जिसे चुनाव के दरमियान भाजपा के नेताओं और मीडिया ने भी जमकर प्रचारित किया !
बंगाल विधानसभा चुनाव में दो शब्द एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुख से दीदी ओ दीदी और दूसरा सुश्री ममता बनर्जी के मुख से खेला हो बे निकले और यह दोनों ही वाक्य पश्चिम बंगाल चुनाव के टर्निंग प्वाइंट साबित हुए, इन दोनों ही शब्दों ने भाजपा को सत्ता मैं आने नहीं दिया और तृणमूल कांग्रेस को तीसरी बार सत्ता पर पहुंचाया !
जहां तक, " खेला हो बे, की बात करें तो, यह शब्द सुश्री ममता बनर्जी के मुख से तब निकला जब नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र से वह अपना पर्चा दाखिल कर लौट रही थी तब उनके पैर में चोट आ गई जिसे उन्होंने राजनीतिक षड्यंत्र बता कर एक चुनावी सभा में भाजपा को खेला हो बे की चुनौती दी थी !
खेला हो बे चुनौती यह नहीं थी कि ममता बनर्जी के पैर में चोट लगने से उन्हें जनता का वोट मिल जाएगा बल्कि खेला होवे का राजनीतिक अर्थ यह था कि जो नेता तृणमूल कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं दरअसल खेला यही नेता करेंगे और ऐसा चुनाव के दरमियान उस समय दिखाई दिया जब भाजपा ने अपने टिकट ओं की घोषणा की तब भाजपा के अंदर काफी विरोध देखने को मिला था क्योंकि भाजपा ने तृणमूल छोड़कर भाजपा में शामिल हुए लोगों को बड़ी संख्या में प्रत्याशी बनाया था और पूरे चुनाव में ज्यादा भरोसा भी भाजपा के रणनीतिकारों ने तृणमूल कांग्रेस से बागी नेताओं पर ही किया था !
खेला हो बे इसकी एक बानगी तब देखने को मिली थी जब सुश्री ममता बनर्जी ने अपने एक साथी जो भाजपा में शामिल हो गया था उससे नंदीग्राम में मदद करने की अपील की थी, ममता बनर्जी और भाजपा में शामिल उस नेता की फोन पर हुई बात को भाजपा ने सार्वजनिक कर दिया और ममता बनर्जी को घेरना शुरू कर दिया था तब मैंने अपने ब्लॉग में लिखा था कि क्या तृणमूल कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में शामिल हुए नेता अभी भी सुश्री ममता बनर्जी के संपर्क में हैं और क्या यही असली खेला होगा ! अब जब पश्चिम बंगाल मैं लगातार तीसरी बार सुश्री ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है उसके साथ ही राजनीतिक गलियारों में खबर यह आने लगी है कि तृणमूल कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में शामिल हुए नेता अपने घर वापसी का प्रयास करने में लग गए हैं ! गुजराती भाजपा के स्टार प्रचारक और चाणक्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह बंगाली सुश्री ममता बनर्जी के बुने जाल में फ स कर मात खा गए क्या ?
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