भगवान की परिभाषा क्या है ?
किसे कहते हैं भगवान ?
राजकुमार सुकिती गोतम बुद्ध जिनको सिद्धार्थ गोतम बुद्ध भी कहते हैं , बुद्ध ने अपनें चित्तसे समस्त विकारों जैसे काम क्रोध लोभ मोह ईर्ष्या द्वेश अहंकार आदि विषयों विकारों को भग्ग कर दिया इसलिए वो भगवान कहलाते हैं ।
अपनें विकार रूपी दुश्मनों को अपनें मन से उखाड़ दिया कोई विकार नहीं बचा मुक्त हो गय , शुद्ध हो गय, बुद्ध हो गय । इसलिए वो
बुद्ध कहलाते हैं , अरहर , अरिहत , देवों ,के देव महादेव कहलाते हैं, देवता का अर्थ है, देने वाले , 45 वर्षों तक सुकिती गोतम बुद्ध हुए तब से लगातार समाज की भलाई के लिए शिक्षा देते रहें , अज्ञानता में भटकते समाज को बिना थके अंतिम सांस तक जगाते रहे हैं ।
अर का अर्थ है शत्रु ,या दुश्मन ।
हत का अर्थ है , नष्ट करना
विकार रूपी अरि, अर यानि दुश्मन ।
विकार रूपी दुश्मनों को जड़ से नष्ट कर दिया इसलिए बुद्ध अरिहत ,अरहत भी कहलाते हैं ।
बुद्ध एक उपाधि है ,भगवान एक उपाधि है ।
भग्ग का अर्थ है ,नष्ट करना ।
हर इंसान अपने विकारों को भग्ग कर के खुद ही भगवान बनें इसलिए बुद्ध ने सत्य का मार्ग खोजा ।
सत्य चेतना का प्रवाह हर इंसान की काया के भीतर है , जिसे आप सब ईश्वर अल्लाह ,राम ,खुदा , वाहेगुरु ईशु आदि नामों से पुकारा करते हो उसका तो कोई नाम ही नहीं है ,उसे बुद्ध ने सत्य का ,ओर उस सत्य चेतना के प्रवाह को काया के भीतर देख लो ऐसा रास्ता बता दिया ,वो मार्ग ही , अशोक चक्र है , धम्म पथ है ,जिसे विपश्यना पथ भी कहते हैं । धन्य हैं बैधिसत्व डा. भीमराव अम्बेडकर जी जिन्होंने अनंत दुखों से मुक्ति का मार्ग , हमें राष्ट्रीय ध्वज पर अंकित करके , अशोक चक्र के रूप में , दे दिया है ,केवल संविधान से ही हमें , निर्वाण प्राप्त करने का मार्ग ,जिसकी खोज बुद्ध ने की थी उस विपश्यना पथ को राज़ चिह्न के रूप में , बाबासाहेब ने हमें दे दिया है ।
अनंत सुखों का मार्ग ही अशोक चक्र है ।
दुखों से छुटकारा पाने का मार्ग ही अशोक चक्र है ।
अपनी काया के भीतर ही परम सत्य चेतना को देखने का मार्ग ही अशोक चक्र है ।
सत्य काया के भीतर है उसे शरीर के भीतर ही खोजों ।
जिस राम ईश्वर अल्लाह की तलाश आपको है उसे काया के भीतर जाकर विपश्यना करके देखो ,होगा तो मिल ही जायेगा उसके लिए बाहर न भटको ।
जरा सोचो सत्य काया के भीतर है तो बाहर कैसे मिलेगा , जप तप ब्रत उपवास पूजा पाठ कर्मकांड यज्ञ हवन आदि करनें से सत्य नहीं मिलेगा ।
आओं दस दिन के लिए विपश्यना करके पूरा विद्या सीखें ।
हम भारत के लोग सभी राष्ट्रीय ध्वज पर कदम कदम चलें और विश्व शांति स्थापित करें ।
सदगुरु कबीर साहब भी समझाते हैं , काशी गया और द्वारका तिरथ सकल भरमत फिरे ,गांठ न खोली कपट की तिरथ गया तो क्या हुआ?
तीर्थ यात्राएं करनें से जो मन के भीतर विकार हैं , छल कपट लोभ लालच का मैल मन में भरा है उसे तो धो नहीं सकोगे इसलिए शरीर के भीतर की यात्रा करो ।
सदगुरु कबीर साहब क्या कहते हैं, कि हे सखी छोड़ दो पीहर,सासरो म्हारी हेली छोड़ दो रंग वर सेज,।
छोड़ो पिताम्बर ओढ़वो, , म्हारी हेली,कर लिजो, भगवा वेश ।
खुद भगवा हो जाओ ।
भग्ग रागोती भगवा ।
भग्ग मोहोती भगवा ।
भग्ग दोषोति भगवा ।
अपनें समस्त विकारों को भग्ग करके स्वयं ही भगवा हो जाओ , खुद ही भगवान हो जाओ ।
जब भगवा खुद को ही होना है ,तो पिताम्बर यानी पीले कपड़े ओढ़ने की भी जरूरत नहीं है ।
सदगुरु कबीर साहब ने जो कहा है वहीं कहा जो बुद्ध ने कहा कि सत्य शरीर के भीतर है ,उसे खुद भगवान होकर देख लो ।
जब तक विकारों की चादर चित्त में है तब तक जिस सत्य को खोज रहे हो वो मिलेगा नहीं ।
कुंभ नहा लो , गंगा गोमती नहा लो लेकिन कपट की गांठें नहीं धूल सकती हैं, अपनें मन को साफ करने के लिए बुद्ध ने मार्ग बता दिया है उस मार्ग पर चलने की जरूरत है ।
ओर सद्गुरु कबीर साहब भी आपको अपने विकारों को साफ करने के लिए ही शिक्षा दे रहे हैं लेकिन हम उनकी शिक्षाओं को पालन नहीं करते हैं , और अधिक पाखंड वाद को बढ़ाने का काम कर रहे हैं ।
सब लोग शान्त होकर अपनी काया के भीतर सत्य चेतना के प्रवाह को देखने के लिए तैयार हो जाए तो बाहर भटकते रहने की जरूरत नहीं होगी ।
ओर जिन पाखंडियों ने हमें , हमारे पूरे समाज को पाखंडवाद में ईश्वर के नाम पर उलझा रखा है , उससे आजादी मिलेगी , जरूरत है शिक्षित बनने की ,अपने सदगुओ की बात मानने की ।
भगवान की परिभाषा समझने के बाद आप खुद परिक्षण करें कि जिन चित्रों की जिन मूर्तियों की आप पूजा कर रहे हैं, क्या उन्होंने अपने समस्त विकारों से छुटकारा पा लिया है ?
क्या उन्हें गुस्सा नहीं आता ?
क्या उन्होंने कोई युद्ध नहीं किया ?
आप जिनकी पूजा पाठ करनें में समय व धन गंवा रहे हैं , जरा उनका चरित्र देखो, हथियार धारण किसलिए करता है इंसान ?
क्योंकि डरता है ,भय से मुक्त नहीं हुआ है ,ऐसा इंसान जो हथियार धारण करें वो भगवान नहीं हो सकता है ।
बुद्ध सद्गुरु कबीर के हाथ में कोई हथियार नहीं है उन्होंने किसी को नहीं मारा फिर भी पूरे विश्व में बुद्ध का नाम है , सदगुरु कबीर साहब का नाम है , उनकी वाणियो को समझने के लिए रिसर्च सेंटर हैं । बुद्ध कब डरे, वो तो अंगुलीमाल जिसे राक्षस कहा गया है ,उस अंगुलीमाल राक्षस को भी हथियार धारण करके नहीं मारते हैं । बिना डरे उसके पास जाकर केवल अपनी शिक्षाओं से बदल देते हैं । ओर वही अंगुलीमाल, चीवर धारण करके अरहत हुए, बुद्ध की विपश्यना की धम्म पथ पर चले ओर निर्वाण प्राप्त किया । बुद्ध ने किसी भी इंसान को या राक्षस को नहीं मारा। भगवान की परिभाषा समझने की जरूरत है ,आप किसे भगवान मान कर पूज रहे हैं ,किस के नाम को रट रहें हैं तनिक ठहरो तो सही ,रूको तो सही जरा सोचो तो सही जो परम सत्य चेतना का प्रवाह हर इंसान की काया के भीतर बह रहा है उस परम सत्य को आप किसी भी इंसान की भगवान मानकर पूजा पाठ करके कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
जब सत्य आपके शरीर के भीतर है तो फिर पूजा किसकी?
गुणगान किसका ?
सत्य चेतना का प्रवाह काया के भीतर है उसे देखने का मार्ग ही बुद्ध ने बताया है , उस मार्ग पर चलने की जरूरत है, ब्रत उपवास पूजा पाठ कर्मकांड यज्ञ हवन करके अपनी काया के भीतर के सत्य को नहीं देख सकते हैं । विश्व गुरु तथागत गौतम बुद्ध के मार्ग पर चलकर देखो, धम्म के पथ पर चलकर देखो ।
भीतर के पट खोलो बाहर की खटपट मिट जायेगी ।बाहर की दोड खत्म होगी तब भीतर प्रवेश मिलेगा ।
(लेखिका : उपासिका राजेश शाक्य, व्याख्याता जिला कोटा राजस्थान)
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