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Thursday, June 3, 2021

6/03/2021 01:04:00 PM

कबीर सो धन संचयी जो आगे का होय ।

 सिस चढ़ाएं पोटली जात न देखा कोय ।


सदगुरु कबीर साहब कहते हैं कि 

महल चूने खाई खने, ऊंचे-ऊंचे धाम ।

जब यम बैठे कंठ में, तेरे कोई न आवे काम ।

सदगुरु कबीर साहब लोगों को समझाते हैं कि जो धन एकत्रित किया है उसे भलाई के काम में लगा दो , ऐसा धन एकत्रित करो जिससे पाछै हंसी न होय ,लोभ लालच के चक्कर में पड़ कर केवल धन का संचय ही नहीं करें बल्कि उस धन को भलाई के काम में लगा दें ।

दूसरों का छीनने की कोशिश न करें , जिनको जरूरत उन्हें दान करें ।

बड़े बड़े राजा महाराजाओं को देख लो , उनके राजमहल देख लो आज खंडहर होकर पड़े हैं, मैं ओर मैरे का भाव ही लालच है, सब कुछ मुझे ही मिल जाए ,बस पास में कोई भूखा है तो हो ऐसे निकम्मे लोग भूखे को भोजन नहीं करा सकते हैं ,आपकी सम्पन्नता क्या यही है कि आप भूखे को भोजन न दे सके , जिनके पास वस्त नहीं है उनको वस्त्र दें ।

जिसे देना नहीं आता वो भला क्या देगा? 

वो इंसान तो गरीबों के घर से भी छीन लेगा ऐसी मानसिकता के लोग आज समाज हैं ,जो संविधान के आरक्षण से उच्च पदों पर नोकरी तो करते हैं लेकिन उन्हीं बाबा साहेब की एक बात भी नहीं मानते हैं ,कितनी विकृत मानसिकता के लोग हैं ,ऐसे लोग ही घोर पाखंडी हैं ।

लालची लोग लोभी  क्रोधी स्वभाव के कारण केवल झूठा दिखावा करने हैं , मन में गंदगी रखते हैं  और यज्ञ हवन करके धार्मिक कहलाते हैं ।

दूसरे मनुष्य तो बेघर हो जाए इनको कोई फर्क नहीं पड़ता है ,यह तो अपना ही घर बहुत ऊंचा बनाएंगे । जैसे जब मरेंगे तो पोटली बांध कर अपने सिर पर रखकर ले जाने वाले हैं ।

कबीर साहब कहते हैं कि मैंने तो आज तक एक भी इंसान को सिर पर धन की गांठ बांध कर ले जाते हुए किसी को न देखा है ।

आप सम्पन्न हैं अच्छी बात है , आपके घर में लाखों रूपए बाबासाहेब की दया से बैंक में जमा हो जाता है लेकिन कितने अंध भक्त हो आप , जिस रूपय से ऊंचे महल बनाते हो यह भी भूल जाते हो कि शिक्षा का हक तो संविधान से मिला है फिर यह यज्ञ हवन करके आप किसे धन्यवाद दे रहे हो ? 

इतनी मूर्खता करते हैं लोग हमारे अपने महान पुरुषों की एक भी बात नहीं मानते हैं लेकिन कलम कसाईयों की झूठी बातें खूब मानते हैं ।

सदगुरु कबीर कहते हैं कि जब यम कंठ में बैठेगा तब यह महल तेरे काम नहीं आयेंगे , ‌तुम चाहो या न चाहो यह घर कंकड़ पत्थर का मकान तो छोड़कर जाना ही पड़ेगा । ओर जिनके लिए आप यह धन एकत्रित कर रहे हो ,वो बच्चे भी  काम नहीं आएगे , शमशान तक ही जायेंगे और जला कर घर आकर मौज करेंगे ।

इसलिए लोभ लालच में मत पड़ो ,धन है तो उसे भलाई के काम में लगा दो ।

बांट दोंगे तो बच जायेगा और चिपका कर रखोगे तो आपके बच्चे दारू पियेंगे जुआ खेलेंगे सारे गलत काम में वो धन खर्च होगा क्योंकि धन का सही इस्तेमाल करना आपने नहीं सीखाया है ।

केवल धन एकत्रित करना ही आपकी अभिलाषा रही है ओर सारे जग का धन आपको मिल जाए तो भी आपका भीखारीपन तो जानें वाला नहीं है ।

कबीर कहते हैं ऐसा धन एकत्रित करो जो आगे का लोक भी सुधरें ,कुछ पुन्य करो , यज्ञ हवन करके घी जला कर पाखंडी मत बनो , समाज में बहुत लोग हैं जो संविधान से मिले अधिकारो की रक्षा के लिए लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे हैं ,जरा उनका भी ख्याल करो ।

अपनें सद्गुरु कबीर साहब कहते हैं कि 

यह तन काचा कुंभ है, जिसे लिए फिरो तुम साथ ।

धक्का लागा फूट गया,कछु न आयो हाथ ।

एक धक्का लगेगा और धूल में मिल जायेगा इसलिए मत कर माया को अहंकार , मत कर काया को घमंड , काया गाय से काची।

मिट्टी के ढेर से पहले खत्म हो जायेगी ।

एक पवन का झपका लग जाए तो यह काया धूल हो जाती है ।

धूल हो जाती है यह काया जो है ,ओस का मोती है ।

हवा के झोंके से नष्ट होने वाली मनुष्य की काया है लेकिन जीते जी मनुष्य कितना अभिमान करता है ।

यह शरीर में सत्य चेतना का प्रवाह है , वहां तक पहुंचने की तो कभी नहीं सोचता है ओर केवल पाखंडी होकर घूमता है ।

दीया की बाती कब  बुझेगी तुझे खबर भी नहीं होगी ।

फूट गया सिन्धडा रो तेल , बिखर गया सब खेल ,बुझ गई दीया की बाती ।

दीया जल रहा है तब तक जल रहा है , कब बुझेगा यह खबर नहीं है ।

इसलिए सद्गुरु की शरण आए और जो गुरु मार्ग बताते हैं उस मार्ग का अनुसरण करें ।

जगत गुरु बुद्ध ने कहा कि अपना दीपक खुद बनो ।

अपनी ही काया के भीतर दीया जला है उसे देख लो ।

मैं मार्ग बता सकता हूं , उस मार्ग पर चलकर मनुष्य खुद ही पूजनीय बन सकता है ।

बुद्ध ने कहा न सद्गुरु कबीर ने कि मैरी पूजा करो लेकिन मनुष्य अपनों की नहीं सुनता है ।

कलम कसाईयों ने जो झूठ लिखा है उस झूठ को आप इसलिए मानते हो क्योंकि खूब बुरे काम कर लो , ओर गंगा नहा लो , खूब धन लूटो और यज्ञ हवन कर लो ,खूब लोभी क्रोधी लालची बने रहो और ब्रत उपवास पूजा पाठ कर्मकांड कर लो ,बहुत आसान तरीका है ।

सत्य की राह पर चलने के लिए खुद का विवेक जगाने की जरूरत है ।

जागो और  जाग कर देखो ,यह धन की पकड़ को भलाई के काम करके थोड़ी ढीली करो ।

एक दिन नौका में पानी भरेगा और डूब जायेगी चलते बनोगे संसार से , उससे पहले दोनों हाथों से धन का सही इस्तेमाल करें ,भलाई के काम में लगाए ।

(लेखिका : राजेश शाक्य लेक्चरर जिला कोटा राजस्थान)